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पत्थर-युग के दो बुत
 

४० पत्थर-युग के दो वुत प्रतीत होता है , मन उदार और भावुक होता है। उस वक्त बुद्धिमान लोग शत्रु से भी अपना काम बना ले जाते है। मैंने स्वय देखा है और लाभ उठाया है। मेरे वे उच्चपदस्थ जो, आफिस में मुझे अपने सामने कुर्सी पर वैठने को भी कभी नही कहते-यद्यपि मैं स्वय भी एक उच्चपदस्थ पुरुप हू-ड्रिक के समय ऐसा दोस्ताना वर्ताव करते है कि उस वक्त मैं चाहू तो उनका सिर भी माग सकता हू और वे खुशी से दे सकते है। फिर भी उसमे नुक्स है, मैं स्वीकार करता है। कभी-कभी ज्यादती हो ही जाती है और मैं 'प्रोवर डोज' हो जाता है। पर इससे मैंने आज तक किसी का कोई नुकसान नही किया। विदेश में मैंने देखा है, रात को पीकर एकदम बदहवास पति को लेकर जव उसके दोस्त उसके घर पहुचते है, तो उसकी पत्नी उसे महज़ एक विनोद ही समझती है । वह पति के मित्रो का हँसकर स्वागत करती है । और अधिक से अधिक एकाच उलाहना देकर पति को छुट्टी दे देती है। दूसर दिन उनके नये प्यार का, नये आनन्द का दिन होता है। मैंने तो नही देखा, कही कोई पत्नी केवल ड्रिंक को लेकर ही महाभारत खडा कर दे । रेखा को मैं प्यार अवश्य करता हू, पर मैं उसकी गुलामी को बर्दाश्त नही कर सकता। यह रेखा की ज्यादती है, फिर भी अब तो मैं उससे डरने ही लगा। उसी दिन की वात लो, दोस्तो का भी बुरा वना, सोसाइटी मे गवार कहलाया और सबको छोडकर भाग पाया । सो वह वेरुखी उसी का नतीजा है। उस दिन मेरा वर्थ-डे था। दोस्तो ने घेर लिया। मुझे उन्हे एक काक- टेल-पार्टी देनी पडी। सदैव से देता रहा हूं, पर इस बार मैंने निश्चय कर लिया था कि जल्द घर लौटूगा, और दोस्तो के मना करने पर भी मै सवको छोड-छाडकर खिसक पाया। बडी भद्दी बात थी। मैं मेजवान था, मेरा वर्थडे था और मैं ही उन्हे छोटकर भाग आया। निमन्त्रितो मे केवल दोस्त ही न थे, मुझसे ऊचे पोहे के व्यक्ति भी थे। मुझे उनसे तबियत खराव होने का बहाना करना पडा । मन को बहुत बुरा लग रहा था, पर रेखा का ख्याल था। इस वार घर पर भी मेहमानो की आवभगत में करना