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पत्थर-युग के दो बुत
४१
 

पत्थर-युग के दो बुत ४१ -वरस चाहता था , पर घर पहुचकर देखा-सव सामग्री जैसी की तैसी रखी है, पर मेहमान कोई नही है। अकेले राय थे लेकिन कुछ परेशान-से - घबराए- से । और दूसरे दिन सुबह जब मुझे ज्ञात हुआ कि रेखा ने इस वार किसीको निमन्त्रित ही नही किया था, तो मैं अपने को काबू न रख सका- पडा । किन्तु भली-बुरी जो वात थी खत्म हुई , पर रेखा उसी दिन से वदल गई है। उसके सव रग-ढग कुछ-के-कुछ हो गए है। मैंने ही मनाया है उसे । मगर अब वह एक निर्जीव गुडिया-सी हो गई है जिसमे चाभी भरने से उसके हाथ-पैर तो चलते हैं पर प्राण उसमे नहीं है।