पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लीलावती 1 - वडी खराव वात है | ये वर्मा साहब तभी घर आते हैं, जव डैडी घर पर नहीं होते, और घटो जमे रहते हैं जैसे इन्हे और कोई काम ही नही हो । ममी और वे दोनो, कमरा बन्द करके न जाने कौन-सी गुत्विया मुल- झाते है । मुझे यह सव पसन्द नही है। मैं आज ज़रूर डैडी से कहूगी। कल वे दोनो कोई पिक्चर देखने गए -मैंने साथ चलने को कहा तो टाल गए और इतनी रात वीते आए। मैं जाग रही थी। मैंने देखा-ममी की क्या हालत थी। उनके पैर सीधे नही पड़ रहे थे। ज़रूर-जरूर उन्होंने ड्रिंक किया था। सुवह आज जव मैंने पूछा तो विगड वैठी। इसके क्या मानी ? माना कि वच्ची हू पर सब समझती हू। वडी खराव वात है, वे वर्मा साहव अच्छे ग्रादमी नहीं है। ममी अव वह ममी नही रही । न उन्हे अब मेरा ही कुछ ख्याल ह, न प्रेम है । वे चाहती है कि मैं मर जाऊ । मगर मैं क्यो मर जाऊ भला? जव देखो भरी वैठी रहती है। कभी मीठे बोल नहीं बोलती । नोकर-चाकर सभी तग है । अभी वह हमारा पुराना बूढा नौकर नौकरी छोड गया, इंडी से उसने कहा, "मालिक, अव इस घर में रहने के योग्य मैं नहीं रहा, न नाता ।" जब मैंने समझाया तो कहने लगा, "विटिया, बस, इस घर मे रहने का धर्म नही रहा।" ममी की योर उसका इशारा था। उसे भी पं वर्मा साव एक ग्राख नहीं सुहाते । लेकिन ममी है कि उन्हें देखते ही जिल उठती हैं । जव डैडी घर मे होते हैं तो उनकी तवियत खराब हो जाती है कमरा बन्द कर पड़ जाती है, वोलती तक नहीं । पर वर्मा नाब सी मोटर 74