पत्थर-युग के दो बुत उलझन से पैदा होते है | उसने तो अभी जिन्दगी की सुबह ही देखी है । जिन्दगी मे कभी दुपहरी भी आती है, उसमे आधी-त्फान, वरमात, भूचाल, वरवादी भी आती है, यह वह क्या जाने ? अपनी ममी को वह प्यार करती श्री-शायद अब भी करती है। आज तीन दिन हो गए, जब से माया गई है, वह बरावर रो रही है । खाना उसने नहीं खाया है । एक शब्द भी उमने अपनी जवान से नहीं कहा है । चुपचाप रो रही है, वस रो रही है । जैसे वह एक दूध पीती हुई वच्ची हो और उसे अकेली छोडकर उसकी मा मर गई हो। मुझे भी वह प्यार करती है, बहुत करती है। इसी मे वह मुझे देखते ही फूट पडती है । शायद वह समझती है कि उसी की वजह से माया चली गई है। जब उसने सब हकीकत मुझसे कही-मेरी गैरहाज़िरी मे वर्मा का ग्राना और घटो घर मे एकान्त मे रहना, माया का उसके साथ घर से वाहर सिनेमा के बहाने जाना और बडी रात बीते गराब के नशे में धुत् लौटना, वेवी के रोक-टोक करने पर डाटना-डपटना, हाय तक छोड बैठना- तो मैं चुप न रह सका। कुछ तो सब बाते सुनकर में अपने दिमाग का मतुलन पो बैठा, और कुछ यह भी ख्याल किया कि चुपचाप बर्दाश्त कर ल् ता वेची क्या कहेगी। मैं माया से उलझ बैठा। कुछ यह बात नहीं कि मैं नव मामला जानता नहीं या । कई महीने पहले ही में वर्मा और उसने अदेन सम्बन्ध को जान-भाप गया था, पर मुझे उस हालत में क्या करना चाहिए था, यही नय न कर पाया था । बहुत वार मैने माया को समझाना भी चाहा। पर म उसे नसीहत कैसे दे सकता था, जबकि वह जानती है कि मै बुद उसके प्रति वफादार नहीं है। सिर्फ एक रेया ही की तो बात नहीं, और भी स्त्रियो से मेरे मम्बन्ध है। इस बात को छिपाने में क्या लाभ है ? खामरर माया से तो कुछ छिपा नहीं है । रेखा की बात भी कह जान गई है। रवा एक वफादार पौरत थी। परन्तु उनके व्याह को ना अभी पाच ही चरन हुए थे। पाच वरम की वफादारी भगा बाईम परम की वफादारी का क्या मुकाबला कर सकती ह
पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/६२
दिखावट