माया तलाक मजूर हो गया और राय से मेरा सम्बन्ध विच्छेद हो गया। परन्तु पत्नी अपने परिवार में किस तरह पसी हुई है, इस बात पर तो मन कभी विचार ही नहीं किया था। हकीकत तो यह है कि किसी स्त्री का पत्नी बनना एक ऐसी मानसिक दासता है जिसका आदि है न अन्त । लोग उमै मामाजिक दासता कहते हैं। पर में पहले मानसिक दासता की ही वान कहगी। अपने पति को-श्री राय को-मन तलाक दे दिया। बड़ी ग्रानानी में उनमे मेरी छोट-छुट्टी हो गई। अब न ये मेरे पति रहे, न मैं उनकी पत्नी । उन्होने न मेरे काम मे बाधा दी न मेरे विचारो मे । काश कि वे मृत्यु तक मेरे पति रहने, मैं उनकी गोदी मे मिर रराकर मरती । एक प्रेमी, उदार और गुने मस्तिाक के पति है। उनकी मोरवन में प्रानन्द और म्वतन्त्रता दोनो ही है । वाईम वर्ष हम लोग दूर म मिथी की भाति मिल-जुलकर एक होकर रहे। हम दो है, या कभी दो हो मकत है, यह कभी मैने न विचाग या । परन्तु जैसे भूचाल पाते हैं, उत्का पाती है, प्रतय होती है, नृत्यु ग्राती है, वैसे ही यह विछोह भी पा गया। यह प्रनि- वाया-मेरी और उनकी, दोनों की प्रतिष्टा पोर मर्यादा नि। नानून ने, नमात ने, बदले हुए दृष्टिकोण ने मेरी महायता की। बाद वों के मस्कारों पर भी मने काबू पा लिया। मने छाती पत्थर को पाकर ही वह काम किया पा। और अब हम प्रत्यक प्रम पति-प-तीनही रह। परन्तु क्या वैची नी अब मेरी बेटी न रही? यह पान तो न वह माली! न मेग मन मानता है। राय भी यह वान नहीं मानते। प्रामीन मी
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