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पत्थर-युग के दो बुत
 

पर म तो पत्थर-युग के दो बुत काश, मैं भी वही भेड-सी स्त्री होती ता समझती | औरत का जन्म ही घुट- घुटकर मरने और सहन करने के लिए होता है। सभी मर्द अपनी-अपनी औरतो की छाती पर मग दलते हैं। इसमे नई वात क्या है उन औरतो से भिन्न प्रकार की है। मैं यह कैसे बर्दाश्त कर सकती है? मैं औरत की ज़ात को न केवल यही—कि वह पुरुप के बराबर है-म यह भी मानती है कि वह पुरुप से बढकर है। में यह भी जानती ह कि समाज का बाहरी वन्धन चाहे जैसा हो, परन्तु जीवन मे प्रोरत मई के अधीन नहीं है। मर्द ही पौरत के अधीन है। एक बात यह कही जा सकती है कि प्रात्म-सम्मान के नाम पर राय को त्याग देना-उनमे सम्ब-म-विच्छेद कर तेना मेरे लिए उचित ही या, मैने ठीक किया , परन्तु अब मुझे दुमरे किमी पुरुप से विवाह नहीं करना चाहिए, एकाकी जीवन व्यतीत करना चाहिए। इससे लोगो की नजर में म ती उठ गाऊगी। परन्तु इस पोच पोर लचर दलीत को में को- पर टोपर मारती है। इसका तो साफ-साफ यही अर्थ है कि राय के अपराधमा द म भोग। गय के मार्ग भ सर विन-वारा हटाकर मेन उन्ह सुनकर मोत-मना करन के लिए छुट्टी दे दी, मुभिगो की गह प्रगत कर दी-पार प्रब में पय गली पर टगी रहकर, ममाग के प्रग ने काटी जाकर अपना शेष जीवन व्यतीत कर द ऐसा न नहीं कर माती, क्याकि म मबम प्रधि प्रपाही का प्यार करती है। ग्रपन का न दुनिया मे नवमे अधिक पिप मानती हैं। य और निष्ठा के नाम पर न प्रात्मपीडान भी पिमुग नहीं होगा नाही, ग्राकारण ही निराशावाद, प्रात्मपीटा पार निरीह का हो पनद करती। न औरत , प्रार मुझे मद वाभिमा । यह बात मी प्रावधाता और चिरे अनुप नहीं कहती, पनामा माग ही है। अन्य युग ने तब मन्न नमानापा-~-17- HIT नन्वन्ध न उनी प्रकार स्वतन्त्र रेनिम पसार पशु-पक्षी। प्रम भी {- चाहे पुन्प ने बान-नन्वतकर नाती पी, उन यायो! fr ,