पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/८१

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रेखा - माया ने अाखिर वर्मा से सिविल मैरिज कर ली । राय न उनके सम्बन्ध मे बहुत-बहुत वाते की हैं । ऐसा प्रतीत होता है, राय का दिन टूट गया है। वे ज़रूर ही माया को प्यार करते थे । वह तब प्यार अव उन्हान मुझे ही समर्पित कर दिया है, वचन से भी और चेप्टा ने भी राप यही प्रमाणित करते है। मैं उनसे प्यार करती है या नही—यह म नही पर सकती। मैंने बहुत बार मन से इस बात का उत्तर मागा है—पर र चार दिल धडकने लगता है, उत्तर नहीं मिलता। फिर भी इतनी बात तो गि जब उनके आने का समय होता है तो एक विचित्र गुदगुदी मन न दान लगती है, और यदि आने मे जरा भी देर हो जाती है तो पेचैनी होने ताती है, ऐसा प्रतीत होता है । जैसे जूडी चटनेवाली है । उनके याने पर प्रनन्ता होती है,यह वात मै नही कह सकती । शायद प्रसन्नता नही होती, नव हाता है। किन्तु भय किससे ? दत्त से ? नहीं, इस बात मे वे रे नावान है कि व उसी समय पाते है जव राय के घर मे होने की सम्भावना नहीं होती। तिर भी भय है । यह भय न मुझे दत्त से है, न राय ने- -अपने ही ने है। नुन ऐसा प्रतीत होता है कि मैं अपने ही ने चोरी कर रही है अपने ही रोला रही हू । परन्तु उस भय के नाच एक नवा उत्तेजना नी, एम मान्नन्सन भी में अनुभव करती है । उनके कपारा ने अवश्य नुके एन जान्न्द मिनता है। उस पान द की बात कही नहीं जा सकती है। उन गान्न्द ने 1-1 होता -नगा होता है। वह न पा जानता है न हानिाना - I है । वहुधा ने राप के जाने के बाद रोई हनन ने सविना नी ?