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पत्थर-युग के दो बुत
 

८० पत्थर-गुग के दो बुत दूगी-नही, अव न आया करे। पर मैं ऐसा नहीं कर सकी, शायद कर सक्ती भी नहीं। मैं वेवम हो जाती है। जैसे बीन की स्वरलहरी पर मस्त होकर नागिन लहराती है, उसी भाति मैं भी लहरा उठती है। दत्त के अकपाश मे मने हातिरेक प्राप्त किया है। वे सर वाने मुझे अब भी याद है। उन्हे याद करके मुझे पत्र भी रोमाच हो जाता है। में चाहती हू, दत्त के प्रकपाश में फिर से वही अनिर्वचनीय प्रानन्द, नही पातिरेक, वही पूर्ण तृप्ति, वही निश्निन्त सुग प्राप्त करू, पर नहीं कर पाती। दत्त का प्रक तो प्रा भी मुझे उपना है। वे पहले की अपेक्षा प्रय मेरा ज्यादा न्याल रखते है। शराब भी कम कर दी है। प्रेमालाप भी रिते हैं। मुा भी देते है । स्पीकार करती है, शरीर-मुम देने की मामर्य उनमे राय में बहुत प्ररित है। राय की अपेक्षा वे सुन्दर भी अधिक है, वनसान भी प्रति प्रोर शायद प्रेमी भी प्रतिक है। वे मेरे है, म उनकी । सोपोर मेरे मिनाम न कोई पाबा है, न भय, न गेरुयाम है । गत निस्ट नही होत , म उनमा व्यान करती है। पर उनके निकट रहन पर रायसी स्मृति मरी पतना को गाकान्त कर जाती है, पाहा कर जानी है। नरे पाश म म Fटी पतग के ममा दर हार पर गाती है। नती किमी प्रभिनापा म म बापा नहीं दती, पर यह म दाती कि राय म मनुष्ट नहीं होत । उन्ह पाहि मेरा पागर, प्रनि, प्रा मांग की। वह मात्र प्रवाहा।' पहाग द म उह य ग अलग पदास, तिन्ह पाकर मर्द की मदानगी तान्य हो जाती है, तृप्त जाती। नतान्ती र, पुप कामी ने यह प्राप्न-य है। गुरुप दाता को दम्भ ही नहीं करता। वह प्रत दाना है भी। यह प्रारम्न मी { if निवाता है और नीना नीरजाती है.IFTH प्रमिfaf नने को पागल हो जाती है, तो वह दो दर RTET || fort देता है, उन मदानगी नियन्ती।। मान्दोमा उनने नहन गुगा प्रानन्द पुत्पादन म प्रता, सारी प्रा। ह व बी टतना ननिती मिपुता {Er if iltri, iler .