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पत्थर-युग के दो बुत
 

८२ पत्तर-युग के दो तुरा गर अपने काम मे बहुत सावधान हैं । वे मदा अनुकूल समय पर प्राने है। जब वे ग्राफिस चले जाते हैं, प्रद्युम्न स्कूल चना जाता है । नौकग को में दो घण्टे की छुट्टी दे देती हू, ओर स्वय डाइग-प मे नली जाती है । तभी वे आते है, चुपचाप, और में उनमे पो जाती है। नहुमा ने एक पटा मेरे पास रहते हैं, पर इस एक घण्टे मे कभी-कभी एका बात होती है। वातचीत प्यार र-मुहब्बत की नहीं, अागामी मिलन-गकेन की। प्रोर कभी वह भी नहीं। वे निम तेजी मे नुगनाप पाते है, उनी नेगी से चो गाते है। और उनके जाने के बाद उन्होने गो कुछ दिया उमे बटोग्ने, महगार गने की नेटा करती है, पर न बटोर सकती है, और न सहेगार ग मानी । 'यार देते हैं, मुम देते , तृप्ति देन है, पर उके जान ही वहारमा पन जाता है, गुडा मारा तगना हे पोर तृप्ति प्यान सोनामासी । मा होता है-चम, पर नही पाहिए। पर उसके प्रानी प्रीतम मप्रामरी जाती है। ऐमी प्रतीता मन दती नीनरीकी। +टम ही योगी, दत्त का मान प्यार किया। पहला-- 4-4 पर IT कानन प्रम। हुन मोगा, पर मीनर मे द्वार पद मिता, पार ही प्रामा। मुताई न दी। यार नही करती ह नागा -ननही जानती। इतनी उलट प्रतीता महरी हनीनही तानती। प्रगना हम उग्राम पनी', यह भी नहीं जानती। विनना मानती! यि गुमीना होती, निश्चित नहीं होती, तृप्त नहीं हारी। मु... नगना , में : मन अपनो ठग विधा है, प्रार न माय-नागाली। किरना मनन अनि सावित नही र पाती।