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पत्थर-युग के दो बुत
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पत्थर-युग के दो वुत ? मैं जानती हू- वन, प्राकर टकराते है, घाव कर जाते है और चले जाते है। मैं नहीं जानती कि दत्त को उनपर सन्देह है या नही-गायद नहीं है, शायद है। छुट्टी के दिन वे दत्त के सामने अाते है। तब पहले-जैनी वुल करने की चेष्टा भी करते है, पर वह वन नहीं पाती। अपनी पवगट को वे प्रद्युम्न मे मन बहलाकर छिपा लेते हैं। मैं भी नो अब उनसे बात नहीं करती। दूर ही दूर रहती हू । क्या बात करू मला अपने को कन टा' इतनी प्रवचना कहा से लाऊ -दत्त बडे अनावधान पुष्प हैं । वे मरलचित्त है और उदार है। बहुत बार ऐमी चेष्टाए हम लोगा । उनके सामने हुई। मैं डर गई कि कही उन्होंने देग्य तो नहीं लिया। पर नहीं। मैंने उनके मन मे विकार नही देखा। फिर भी वे अब ICT प्रकार घुल-मिलकर बात नही करते। उनकी बातचीत पा मिलपिता र टूट जाता है, जैसे उनकी हँसी तुरन्त गायव हो जाती है। दसती 77 वीच वे अधिक गम्भीर हो गए हैं। कभी-कभी मै उनी गम्भीरता दर ही भयभीत हो उठती हू । पर जैसे वे मेरे प्रेम की जाच-पडनात नर्गर उसी भाति मेरे भय की भी नही। म यही सोचती ह, जिन दिन ना- फोड होगा, उस दिन क्या होगा ? गुस्सा उनका पडा नपानर है। वे रत कम गुस्सा करते है, पर जव करते है तो प्रलय उपस्थित हा जाती है। हाय, यह मैने कहा का रोग बना लिया । मन ग्रान पी जिसमे जग-मी असावधानी से भी नत्म हुया जा सकता है। मरीजीपी गृहम्पी पी, हम पति-पत्नी दो ये-दोनो दोनो ना पार न त । - या गया चाद-मा बेटा, प्यार का नुपल पल। पर टनी बीच पद पर मेरे जीवन मे घुस गया। अव म कर भी क्या जितना टने इनकी ह उतना ही यह मुझे पाकात करता है। पिनी दिन बहान पर डालेगा। अब तो म अपनी ही नज़र न पापिनी न .: । पालेज में जब में पहनी पी तब हम नो वाद विवाद -- पुरपो के समान अधिकारी पर बन करते । नरन बटनर न. समान अधिकार सीना और ममन पी। पर 7व तोमनाना . . -1