४२] सुधाकर-चन्द्रिका । राज-घरिश्रारा = राजा का घण्टा। दूस को पहले सूरत घरियार (जल-यन्त्र ) के ऐसी होती थी। इसी लिये दूस का घरियार नाम हुा । घरौ= घटी =जल-घटी। पहले यह दश पल तामे को छ अङ्गुल ऊँचौ, और बारह अङ्गुल विस्तृत गोलार्द्ध के प्राकार को ऐसौ बनती थी, जिम में साठ पल पानी भरे। दूस के नीचे तीन मासा और एक मासे को तिहाई मोने से जो गोल चार अङ्गुल लम्बा तार बने, उस से छेद किया जाता था, उमौ छेद से कुण्ड में वा जल-पूर्ण पात्र में घटी को छोड देने से, माठ पल वा एक घडी (नाडी) में वह भर जाती थी । ऐसा-हौ ज्योतिष सिद्धान्त में श्रीपति ने, जो कि ६६१ शाका (१०३८ ई०) में थे, लिखा है,- 'शुल्बस्य दिग्भिर्विहितं पलेर्यत् षडङ्गुलोच्चं द्विगुणायतास्यम् । तदम्भमा षष्टिपलेः प्रपूर्य पात्रं घटार्द्धप्रतिमं घटी स्यात् ॥१॥ मयंशमाषत्रयनिर्मिता या हेनः शलाका चतुरङ्गुला स्यात् । विद्धं तया प्राकनमत्र पात्रं प्रपूर्यते नाडिकया ऽबुना तत् ॥ २॥ घरिश्रारी = घण्टा बजाने-वाला। पहर = प्रहर । बारी=वार = क्रम = पारी। डाँड : डण्डा = घण्टा बजाने को लकडी । डाँडा = डाँटा = डपेटा । निति = निश्चिन्त = बे- फिकिर । भाँडा = भाण्ड् = वर्तन। चाक = चक्र, कोहार का । काँचे = कच्चे । थिर = स्थिर । श्राऊ = श्रायु । गजर = गर्जर = गजल । निमोगा = निशोक = निश्चय कर के जिसे शोक हो, अर्थात् अभागा । मोई = सो कर ॥ रहट = पुरवट = पारघट्ट । जौन = जीवन : जिन्दगौ वा जल ॥ नवौं पौरी के ऊपर एक दशवाँ द्वार है, तिस पर राजा का घण्टा बजता है घण्टा बजाने-वाला जो है, सो बैठ कर घडी को गिना करता है। ऐसा वे बजाने-वाले पहर पहर पर अपनी अपनी पारी में करते हैं, अर्थात् पहर पहर पर पहरा बदला जाता है। तब एक एक को पारौ पाती है। जब घडी (जल-घडी ) भरती है (पूजती है) तब वह बजाने-वाला (घण्टे पर लकडी से ) चोट मारता है, (दूस प्रकार से ) घडी घडी पर घण्टा पुकारा करता है ॥ घण्टे पर जो डण्डा पडता है, सो (जानों) सब जगत (सब मनुष्य ) को डाँटता है, कि हे मट्टी के वर्तन क्या निश्चिन्त हो ॥ (तुम्हें नहीं मालूम कि) तुम कच्चे हो कर तिस ईश्वर के चाक पर चढे हो, ( इस लिये) तुम दूधर से उधर ) फिरने के लिये आये हो । स्थिर हो कर बच नहीं सकते ॥ और ज्या ज्या घडी भरती है, त्या त्यों तुम्हारी आयु घटती है, (दूस प्रकार जब तुम्हारी 1 9
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