पृष्ठ:पदुमावति.djvu/११४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पदुमावति । २ । सिंघलदोघ-वरनन-खंड । [४२-१३ - खराबी हो रही है, तब) अरे मुसाफिर (बटाऊ) तुम क्या निश्चिन्त सोते हो॥ कवि कहता है, कि पाश्चर्य है, कि लोगों को मावधान करने के लिये पहर पहर पर नित्य गजल हुआ करता है, (परन्तु ) यह निसोगा (अभागा) हृदय सो कर जागता नहीं है। मुहम्मद कवि कहते हैं, कि पुरवट और घडी में जैसी जल भरने की रौति है, वैमा-ही यह (मनुष्य का) जीवन है। जो घडी श्रा कर जीवन को भरौ, वही फिर ढर गई, अर्थात् खाली हो गई, (ऐसा-ही करते करते कई ) जन्म बीत गये ॥ एक अर्थ में घडी से शरौर, और जीवन से जिन्दगी, दूसरे में घडी से जल-घडी, और जीवन से जल समझो ॥ ४२ ॥ चउपाई। गढ पर नौर खौर दुइ नदौ। पानि भरहिँ जइसे दुरुपदौ ॥ अउरु कुंड प्रक मोती चूरू। पानी अंबित कोचु कपूरू ॥ ओहि क पानि राजा पइ पौत्रा। बिरिध होइ नहिं जउ लहि जौत्रा॥ कंचन बिरिख एक तेहि पासा । जस कलप-तरु इँदर कबिलासा ॥ मूल पतार सरग ओहि साखा । अमर बेलि को पाउ को चाखा ॥ चाँद पात अउ फूल तराई। होइ उँजिार नगर जहँ ताई वह फर पावइ तपि कइ कोई। बिरिध खाइ नउ जोबन होई ॥ दोहा। भिखारी सुनि ओहि अंब्रित भोग। जे पावा सो अमर भा न किछु बिआधि न रोग ॥ ४३ ॥ नौर = जल । खोर = क्षौर से पका चावल । दुरुपदी = द्रौपदी । पद = परन्तु । बिरिध = वृद्ध । बिरिख = वृक्ष । कलपतरु = कल्प-तरु स्वर्ग । साखा = शाखा। बेलि = वल्ली = लता। जोबन = यौवन । बिश्राधि व्याधि ॥ गढ पर नौर और खौर नाम को दो नदियाँ हैं । अर्थात् एक का पानी तो पानी- हौ है, दूसरे का पानी खौर है। ये नदियाँ अपना अपना पानी भरती हैं, अर्थात् वहाँ के लोगों को देती हैं, जैसे द्रौपदी पाँचो पाण्डवों को स्त्री । ( महाभारत में कथा है, कि द्रौपदी थोडा भी भोजन बना कर, सब किसी को खिला देती थी, और = राजा भए कल्प-वृक्ष । पतार= पाताल । सरग