८२ पदुमावति । ३ । जनम-खंड । [५२ (जन्म के अनन्तर) छट्ठी को रात हुई। (लोगों ने ) छट्ठी का सुख मनाया। ( ज्योतिषियों के मत से ब्रह्मा प्राणी का शुभाशुभ कर्म छट्ठी के दिन लिखता है, दूस लिये उस के प्रातःकाल से तब ज्यौतिषौ लोग बालक के शुभाशुभ का विचार करते हैं। ललाटपट्टे लिखिता विधात्रा षष्ठीदिने या ऽक्षरमालिका च । तां जन्मपत्त्री प्रकटीकरोति दीपो यथा वस्तु घनान्धकारे ॥ यह श्लोक जन्मपत्री को प्रशंसा में प्रसिद्ध है)। खेल कूद से वह रात बीती। (छुट्टी के दिन स्त्रियाँ रात भर गाना बजाना करती हैं, और बच्चे की माँ बडौ सावधानी से रहती है, जिस में भूत प्रेत इत्यादि को बाधा बच्चे को न हो। यह , कहावत प्रसिद्ध है, कि कृष्ण को माता यशोदा ने छुट्टी के रात कुछ तिरछा रख कर कृष्ण को दूध पिलाया, इसौ से कृष्ण को एक आँख तिरछौ हो गई)। प्रातःकाल हुआ, पण्डित लोग आये, पुरान (फल कहने को पुस्तक ) को काढ कर (निकाल कर) जन्म का अर्थ किये, अर्थात् कैसी घडी में जन्म हुआ दूस का विचार करने लगे । (विचार से जान पड़ा, कि) तिस का (पद्मावती का) उत्तम घडी में जन्म हुआ। ( पण्डितों ने कहा, कि) कन्या नहीं हुई, भूमि में चन्द्र का उदय हुआ, जिस से आकाश दीप्त हो गया (उज्ज्वलित हो गया)। जग में (ब्रह्मा ने ) कन्या राशि का उदय किया है, अर्थात् दूस के जन्म समय में चन्द्रमा कन्या राशि में था, इस लिये इस का दिया हुआ नाम, अर्थात् शास्त्रोक्त राशि-नाम “पद्मावतौ” ऐसा हुआ ॥ ( कन्या राशि में उत्तरफाल्गुनी का तीन चरण, हस्त और चित्रा का श्राधा होता है, जिन के क्रम से टो, प, पी, पू, ष, ण, ट, पे, पो ये अक्षर है। पकारादि नाम होने से उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र के तीसरे चरण में कन्या राशि का तीन अंश बौस कला बौत जाने पर पद्मावती का जन्म हुश्रा)। मानौँ सूर्य और पारस-पाषाण से संयोग हुश्रा, इस लिये किरण जम कर (किरण समेत) हौरा नग उत्पन्न हुआ। (सूर्य राजा गन्धर्व-सेन, पारस चम्पावतो दोनों के संयोग से किरण समेत, अर्थात् कान्तियुत हीरा नग पद्मावती हुई)। तिन से ( पद्मावती से) भी अधिक (ज्योति मैं) पदार्थ को कला, अर्थात् उत्तम पदार्थों का तत्त्व रूप अंश, योग्य (जोग), और निर्मल रतन उत्पन्न हुश्रा है। (रतन से ज्योतिषियों ने सङ्केत से रत्न सेन को बताया ।) सिंहल-द्वीप में दूस का अवतार हुआ, और जम्बू-दौप में जा कर यमालय में जायगौ, अर्थात् मरेगौ ॥
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