पृष्ठ:पदुमावति.djvu/१६१

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५१ - ५२] सुधाकर-चन्द्रिका। GP सुगन्धि) है उस ने वेध कर, अर्थात् जग के सब बस्तुओं में प्रवेश कर, जग (सब ) को बास दिया। उस के ( पद्मावती के ) चारो ओर ( चहुँ पासा) भौंरे और पतङ्गे ( सुगन्ध लेने-वाले कौट मधु-मक्खी इत्यादि) हो गये, अर्थात् सुगन्ध लेने के लिये वे सब चारो ओर से पद्मावती को घेर लिये ॥ दूतने रूप को (वह) कन्या हुई कि उस की बराबरी में कोई पूरा नहीं पड़ता। धन्य वह रूपवान (रूप को खानि) देश है, जहाँ कि ऐमा (पद्मावती मा) जन्म होता है ॥५१॥ चउपाई। भइ छठि राति छठी सुख मानौ। रहसि कूद सउँ रइनि बिहानौ ॥ भा बिहान पंडित सब आए। काढि पुरान जनम अरथाए॥ जतिम घरौ जनम भा तास्तू। चाँद उा भुइँ दिपा अकास्त्र ॥ कनिया रासि उदय जग किया। पदुमावतो नाउँ भा दिवा ॥ स्वर परस सउँ भएउ गुरौरा। किरिनि जामि उपना नग होरा ॥ तेहि तइँ अधिक पदारथ करा। रतन जोग उपना निरमरा ॥ सिंघल-दीप भण्उ अउतारा। जंबूदीप जाइ जमुबारा॥ दोहा। रामा अाप अजूधित्रा लखन बतौस-उ संग । रावन रूप सब भूले दीपक जइस पतंग ॥ ५२ ॥ छठि = षष्ठी। रहमि = कौडा = खेल । रनि =रात्रि = रजनौ। बिहानी = बौती। बिहान = प्रातःकाल । श्ररथाए = अर्थ किये। अतिम उत्तम । दिपा = दिप गया = प्रकाशित हो गया। कनिश्रा = कन्या । सूर = सूर्य। परस = पारस पाषाण । गुरोराः गुरेरा= देखा देखौ = संयोग । जामि = जम कर । उपना= उत्पन्न हुत्रा। जमुबारा- यमालय = मरने का स्थान । रामा = राम । अनधित्रा = अयोध्या । लखन = लक्षण । 11