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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/१६४

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८४ 'पदुमावति ।३। जनम-खंड । -५४ जैसी जन्म-पत्री थी सो ज्योतिषियों ने लिखा, और अमौस (भाशीर्वाद) दे कर (अपने घर) लौट गये ॥ जब वह (सो) कन्या पांचवें वर्ष में हुई, अर्थात् जब पद्मावती को पाँचवाँ वर्ष लगा, तब पुराण पढने के लिये (गुरु के यहाँ) बैठाय दिया (उन के पिता ने )। ज्यौतिष-फलित की आज्ञा है कि बालक को जब पाँचवाँ वर्ष लगे तब अक्षरारम्भ कराना चाहिए, इसी लिये कवि ने पाँचवें वर्ष का नाम लिया है। (पृथ्वी के) चारो खण्ड के राजाओं ने सुना कि, पद्मावती (पढ़ लिख कर) पण्डित और गुणौ हुई ॥ सिंहल-दीप के राजा के घर में देव (ईश्वर) ने महा सुन्दरी कन्या (बारी) का अवतार दिया | एक तो (वयं वह) पद्मिनी, दूसरे पढौ पण्डित, क्या जाने ईश्वर ने ऐसी सुन्दरी को किस के योग्य गढा (रचा) है ॥ जिस के घर में सक्ष्मी का होना (कर्म में ) लिखा है, सो ऐसौ पढौ और सुन्दरी (लोनी) को पता है ॥ सातो द्वौप के वर लोग (विवाह करने के लिये) झुकते हैं (श्रोनाहौँ), परन्तु उत्तर नहीं पाते हैं, (लाचार हो कर घर) फिर फिर जाते हैं । राजा (गन्धर्व-सेन) गर्व से कहता है कि, अरे मैं शिव-लोक का इन्द्र (शिव) हं, मुझ से कौन समता (मरि) को पाता है, अर्थात् मेरौ बराबरी कौन करता है; किस से मैं बरेखी करूँ॥ रौति है कि विवाह, वैर, और प्रौति समान में सोहती है। मो राजा अपने समान किसी को नहीं पाता है, जिस से कि सम्बन्ध करे; दूमौ लिये किसी को कुछ उत्तर नहीं देता। अन्त में लाचार हो कर वर-लोरा फिर फिर जाते हैं ॥ ५३ ॥ चउपाई। - बारह बरिस माँह भइ रानी। राजइ सुना सँजोग सयानौ । सात खंड धउराहर तात्र । सेा पदुमिनि कहँ दोन्ह निवास्तू ॥ अउ दोन्ही सँग सखी सहेली। जो सँग करहि रहसि रस केली ॥ सबइ नउलि पित्र संग न सोई। कवल पास जनु बिगसी कोई ॥ सुआ एक पदुमावति ठाऊँ। महा-पंडित होरामनि नाऊँ॥ दई दोन्ह पंखिहि असि जोती। नयन रतन मुख मानिक मोती॥ कंचन बरन सुश्रा अति लाना। मानउँ मिला सोहागहि सोना ।