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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/१६५

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५४] सुधाकर-चन्द्रिका। ८५ दोहा। रहहिँ एक सँग दुअऊ पढहिँ सासतर बेद । बरम्हा सौस डोलावई सुनत लाग तस भेद ॥ ५४॥ 3 संजोग संयोग = पति-संयोग। सयानी = बडी। महेलो = साथ रहने-वालौं। नउलि = नवल = नई। बिगसी = विकशित हुई। कोई = कुमुदिनी। सुश्रा = शुक

सुग्गा । ठाऊँ = ठाव = स्थान । हीरामनि = होरा-मणि । मासतर = शास्त्र । बरन्हा

ब्रह्मा । भेद = अन्तर = फर्क । बारहवें वर्ष में जब रानी (पद्मावती ) भई, अर्थात् पद्मावती को जब बारहवाँ वर्ष लगा, तब राजा (गन्धर्व-सेन) ने सुना कि पद्मावती (पति के) संयोग लायक मयानौ हुई ॥ दूस लिये तिस का (गन्धर्व-सेन का) जो मात खण्ड का धरहरा था, सो पद्मिनी ( पद्मावती) को निवास स्थान दिया, अर्थात् श्राज्ञा दिया कि, आज से पद्मिनी धरहरे पर रहे (एकान्त समझ कर धरहरे पर रहने के लिये राजा ने श्राज्ञा दिया, जिस में पर-पुरुष की दृष्टि न पडे), और संग में साथ रहने-वाली मखियों को दिया (जिस में पद्मावती का मन बहला रहे उदास न हो), जो कि संग में अानन्द (रहसि) और रस लिये क्रीडा (रस-केलि) करती हैं | ये सहेलियाँ सब नई हैं, और पति के मङ्ग मोई नहीं हैं, अर्थात् सब पद्मावती के समान अनूढा हैं । उन सहेलियों को ऐसौ शोभा है, जानों कमल के संग कोई खिलौ हुई । (कमल पद्मावती और कोई सहेलो सब हैं ) ॥ पद्मावती के स्थान (पास) में एक सुग्गा है, जो कि महा-पण्डित है और जिस का नाम हीरा-मणि है ॥ देव ने पक्षी को ऐसौ ज्योति दिया है, कि आँख तो रत्न, और मुख माणिक्य और मोती है, अर्थात् मुख का वर्ण माणिक्य (लाल मणि), और मुक्ता के ऐसा है ॥ वह कञ्चन (सुवर्ण) वर्ण (बरन) का शक अति सुन्दर (लोना) है, मानों सोहागा में सोना मिला है (सोहागे के मिलने से सोने का रङ्ग और बढ चढ जाता है)। दोनों (पद्मावती और हौरा-मणि) एक संग रहते हैं, और शास्त्र, वेद को पढते हैं। उन के पढने को सुनते-हो तैसा भेद (हृदय में ) लग जाता है, अर्थात् हृदय में उन का पढना ऐसा चुभ जाता है, कि (प्रेम से विहल हो कर) ब्रह्मा शिर को डुलाने लगता है, अर्थात् धन्य-वाद-मुद्रा प्रगट करता है ॥ ५४ ॥