पृष्ठ:पदुमावति.djvu/२१७

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८६-८७] सुधाकर-चन्द्रिका। (जल गई ), इस से एक को बात हृदय में नोन सौ लग गई, अर्थात् शक की बात सुन कर कलेजा छरछराने लगा, जैसे जले पर नोन छिडक दिया जाय ॥ ८ चउपाई। जउँ यह सुश्रा मंदिर मह अहई। कब-हुँ होइ राजा सउँ कहई ॥ सुनि राजा पुनि होइ बिगौ। छाँडइ राज चलइ होइ जोगी । बिख राखे नहिँ होत अँगूरू। सबद न देइ बिरह तमचूरू ॥ धाइ धामिनी बेगि हकारी। ओहि सउँपा हिअरिस न संभारी॥ देखु सुथा यह हइ मँद-चाला। भण्उ न ता कर जा कर पाला॥ मुख कह आन पेट बस आना। तेहि अउगुन दस हाटि बिकाना ॥ पंखि न राखिअ होइ कु-भाखो। लेइ तहँ मारु जहाँ नहिँ साखौ ॥ दोहा। जेहि दिन कहँ हउँ निति डरउ रइनि छपावउँ स्वर । लेइ चह दौर कवल कह मो कहँ होइ मजूर ॥ ८७ ॥ अहई = है। होद = हौति=हि + इति = निश्चय कर के = हो न हो। बिनोगौ = वियोगौ। जोगी = योगौ। बिख = विष = जहर। अंगूरू = अङ्गुर । सबद = शब्द = आवाज । बिरह = विरह = वियोग । तमचूरू = ताम्रचूड = मुर्गा । धादू = धाई = धात्री बचपन में दूध पिलाने-वाली। धामिनौ = धाविनौ = दौडने-वालो (जो नागिन तेज दौडती है, उसे भी लोग आज कल भाषा में धाविनी का अपभ्रंश धामिनी वा धामिनि कहते हैं)। बेगि = शीघ्र। हंकारौ = पुकारौ। सउँपा = समर्पण किया। रिस रोष = क्रोध। सँभारी= सम्भार लिया। मॅद-चाल = मन्द-चाल = बुरा चाल। पाला = पालित = पोषित । श्रान = अन्य । अउगुन = अवगुण । कु-भाखौ = कु-भाषौ = खोटौ भाषा कहने वाला । साखौ = माचौ = गवाह । निति= नित्य । रइनि= रजनौ =रात्रि । सूर = सूर्य । मजूर = मयूर पक्षौ, सर्प का शत्रु = मोरेला = मोर ॥ (रानी अपने मन में सोचने लगी, कि) यदि यह शुक मन्दिर में रहे, और कभौं निश्चय कर के (दूस सिंहल के स्त्रियों को सुन्दरता को) राजा से कहे ॥ फिर 18