१५८ पदुमावति । ८ । राजा-सुधा-संवाद-खंड । [CE-E परन्तु अमृत के प्रभाव से रुण्ड, और मुण्ड, दोनों जीते-हो रह गये। ऐसौ दुर्दशा में राहु को देख कर ब्रह्मा ने इसे वर-दान दिया, कि तुम पर्व में सूर्य और चन्द्र को ग्रास कर लिया करोगे, और उस समय जो लोग दान पुण्य हवन इत्यादि करेंगे सब के भोक्ता तुम होगे। इस प्रकार ब्रह्मा के वर-दान से सूर्य और चन्द्र दोनों राहु के ऋण से बंधे हैं, अर्थात् जैसे ऋण देने वाला ऋणी को पकड लेता है, और वह बेचारा कुछ नहीं बोलता, उसी प्रकार, वर-दान के प्रभाव से, यह राहु सूर्य और चन्द्रमा को पकड लेता है, और ये बेचारे ऋणौ ऐसे कुछ नहीं बोलते ॥ (रत्न-सेन कहता है, कि पद्मावती की मूर्ति सूर्य जो कि मेरे हृदय में पैठ गई है, इस से) तीन लोक और चौदहो भुवन (खण्ड) सब मुझे (दूस घडी) सूझ पडते हैं । (मो) जो मैं मन में बूझ (समझ) कर देखता है, तो प्रेम छोड (जगत में) और कुछ (भी) सुन्दर नहीं है ॥ ८ ॥ चौपाई। पेम सुनत मन भूल न राजा। कठिन पेम सिर देइ तो छाजा ॥ पेम फाँद जउँ परइ न छूटा। जीउ दोन्ह बहु फाँद न टूटा ॥ गिरिगिट छंद धरइ दुख तेता। खन खन रात पौत खन सेता ॥ जानि पुछारि जो भा बन-बासौ। रोव रोव परे फाँद नग-वासी ॥ पाँखन्ह फिरि फिरि परा सो फाँदू। उडि न सकइ अरुझइ भइ बाँदू ॥ मुण्उँ मुण्उ अह-निसि चिललाई। ओहि रोस नागन्रु धरि खाई ॥ पाँडक सुत्रा कंठ वह चीन्हा। जेहि गिउ परा चाहि जिउ दीन्हा ॥ दोहा। तीतर गिउ जो फाँद हइ निति-हि पुकारइ दोख । सो कित हंकारि फाँद गिउ (मेलइ) कित मारे होइ मोख ॥६॥ पेम =प्रेम । छाजा = छाजता है = सोहता है। फाँद = फन्दा। गिरिगिट गिर्गिटान। छंद = छन्द = रचना = रङ्ग रङ्ग का रूप। तेता = तितना = तावान्। खन = क्षण । रात = रक्त = लाल । पौत = पौला । सेता = श्वेत = सफेद । जानि पुछारि = पिच्छालि = मयूर = मोरैला = मोर । = रोम। नग-वामौ = नाग-पाशौ = नाग-पाश का । पाँखन्ह = पौँ । भद् = हो कर । बाँद = कैद। मुण्उ - मोरैले के बोलौ का 1 =जान कर। -
पृष्ठ:पदुमावति.djvu/२३८
दिखावट