१०१] सुधाकर-चन्द्रिका। बामा=वास - . बिसारे विस्मरण कर दिये = भुला दिये । वा बिमारे = बसारे बैठाये हैं। मलय-गिरि= मलयाचल । सुगन्ध। घुघुर-वार = घुघुरू के ऐसे गोल गोल । अलक₹ = अलक का बहुवचन लटें। बिख = विष। सँकरद् श्रङ्खला मौकड । पेम = प्रेम ॥ फंद-वारि = फंदे से भरे। असट-उ= पाठो। कूरौ =कुलो कुल के । बाँद = बंदी = कैद ॥ (हौरा-मणि शुक कहता है, कि) हे राजा (रत्न-सेन), उस के ( पद्मावती के ) श्टङ्गार का (मे ) क्या वर्णन करूँ। उस का टङ्गार उसी पर छाजता है, अर्थात् उस के अङ्ग का श्टङ्गार अङ्ग के ऊपर ऐमा सोहता है, कि वह देखे-ही बन पाता है, कोई उस का वर्णन कर पार नहीं पा सकता ॥ प्रधान कवि लोग देवता के वर्णन में नख-वर्णन से श्रारम्भ कर केश-वर्णन कर समाप्त करते हैं और मनुष्य-वर्णन में केश से प्रारम्भ कर नख-वर्णन तक वर्णन कर समाप्त करते हैं। पद्मावती मानुषी व्यक्ति है दूस लिये कवि ने केश से वर्णन करना प्रारम्भ किया, जैसा कि श्री-हर्ष ने नैषध के सातवें सर्ग में दमयन्तौ के केश-हो वर्णन आरम्म किया और अन्त में स्पष्ट लिखा कि इति स चिकुरादारभ्यैतां नखावधि वर्णयन् हरिणरमणौनेत्रां चित्राम्बुधौ तरदन्तरः । हृदयभरणोद्धेलानन्दः मखौतभीमजा- नयनविषयोभावे भावं दधार धराधिपः ॥ लोक-रौति भी है, कि अनुरागी अनुराग से भरा अपने प्रेमी के देखने के लिये प्रथम ऊपर-हो को ओर दृष्टि करता है, जिस से पहले केश-हौ का दर्शन होता है, और उपासक भक्त श्रद्धा से भरा अपने उपास्य देवता के प्रणाम के लिये पहले उस के चरण-हौ की ओर दृष्टि करता है, जिस से पहले-हौ नख-दर्शन होता है। पहले-ही कस्तूरी से काले और सुगन्धित जो केश हैं, उन पर वासुकि सर्प बलि हो जाता है। (फिर ), हे राजा (नरेमा नरेश ), और (दूसरा) कौन है (जिस कौ उपमा दी जाय)। अर्थात् वासुकि अपने को तुच्छ समझ (कि हाय मैं तो केवल काला-ही हूँ ये केश सुगन्ध से भरे अतिशय काले मुझ से भी बढ कर हैं ) मूर्छित हो, दून केशों को अपना पूज्य समझ दून पर अपने को बलि करता है। कस्य (ब्रह्मणः ) ईशः (क+ ईशः = ) केश:, ऐसा विग्रह करने से ये ब्रह्मा के ईश स्वामी हुए, अर्थात् साक्षात् भगवान् विष्णु हुए, फिर दून पर वासुकि का बलि होना कुछ अनुचित नहौँ । यदि नरेसा को
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