पृष्ठ:पदुमावति.djvu/२६७

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१०५-१०६] सुधाकर-चन्द्रिका। १७७ है। प्रकृति-रूपा पद्मावती को प्रेरणा से भी जो जगत्ममुद्र के तौर पर पहुँचा वह काल-भ्रमर (काल-चक्र ) के चक्कर में पड कर नाना प्रकार की योनि में फिरा करता है, विना भगवदनुग्रह से उस चक्कर से उस का उद्धार पाना दुर्घट है ॥ १०५ ॥ चउपाई। बरुनी का बरनउँ इमि बनी। साधौ बान जानु दुहुँ अनी ॥ जुरौ राम राोन कइ सइना। बीच समुंद भए दुइ नइना ॥ वारहि पार बनाउरि साधे। जा सउँ हेर लाग बिख-बाँधे ॥ उन्ह बानहि अस को को न मारा। बेधि रहा सगर-उ संसारा॥ गगन नखत जस जाहि न गने। वेइ सब बान ओहो के हने ॥ धरती बान बेधि सब राखे। साखा ठाढ ओहो सब साखे ॥ रोव रोव मानुस तन ठाढे। सूतहिं सूत बेध अस गाढे ॥ दोहा। बरुनि बान अस उपनी बेधी रन बन-ढंख। सउहि तन सब रोवाँ पंखिहि तन सब पंख ॥ १०६ ॥ बरुणो = वारणी = आँख में धूल इत्यादि को वारण करने वाली नौचे ऊपर के पलकों को रोमावलौ । अनौ = अनौक = सेना । जुरी = जुटौ = युक्त हुई = एकट्ठौं हुई। राश्रीन = रावण । सना = सेना। समुंद = समुद्र । नना = नयन । वार = जिधर खडे हो उस ओर का तट । बनाउरि = वाणवलि = वाणों को पति । मगर-उ= सकल-अपि = सब। जस = श्रीजम् = चमकौले। हने = हनन किये गये । धरती = धरित्री पृथ्वी । साखा = शाखा = वृक्षों को डार । माखे = शाखौ = वृक्ष। रो रो = रोम रोम। मानुस = मानुष = मनुष्य । सूत सूत्र, यहाँ नापने के लिये एक मान । चार सूत को एक पदून और चार पदून का एक तमू और चौबीस तसू का एक इमारतौ गज होता है। तमू एक इञ्च से कुछ बड़ा होता है। बारह तमू में प्रायः तेरह इञ्च होते हैं । उपनौ = उत्पन्न हुई। रन = रण = संग्राम । बन-ढंख = बन के ढाँकने-वाले अर्थात् वृक्ष । सउज = शवज = शिकार, यहां साधारण चौपाये पशु । पंखि = पचौ। तन = तनु । पंख = पक्ष । 23