पृष्ठ:पदुमावति.djvu/२८१

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सुधाकर-चन्द्रिका। जडा -जूझे = जूझद तिल अन्नविशेष के ऐसा चिह। परा = पडा है। तिल = तिलान के लंबाई चौडाई परिमाण का प्रदेश । वा, तिलतिल = तिल-तिर = तिल-तौर। जरा = जल जाता है। भस्म हो जाता है। वा, जरा जड जाता है। कर-मुहाँ = काले मुहँ का= काल-मुख । सामुहाँ = सम्मुख सामने। अगिन-बान = अग्नि-वाण, जिसके चलाने से अग्नि वर्षा होती है। कटाछ = कटाक्ष = नयन-कोर को चितवन । जूझा (युध्यते) का भूतकाल = जीव से रहित हुए =जूझ गये। काल = सब को मारने वाला। रात = रक्त = लाल । माव = श्याम = काला। धुव = ध्रुव नक्षत्र । गाडि = गड कर। खन = क्षण । बूडद् = बूड जाता है = डूब जाता है । फिर सु-रङ्ग (सुन्दर वर्ण) कपोलों का क्या वर्णन करूँ। (जान पड़ते हैं, कि वे) दोनों अमूल्य, वा उठे हुए, एक-ही नारंगी के हैं, अर्थात् एक-ही काल के एक-ही नारंगी से उठे और लाल लाल ऐसे गोल गोल बने हैं, कि दोनों के रूप रंग में तनिक भौ भेद नहीं समझ पडता। अपाङ्ग-रूपौ पुष्य के रसामृत से माने हुए (नहीं जानते, कि) किस ने दून सु-रंग खिरौरों को बाँधा है, अर्थात् कपोलों को शोभा ऐसी है, जानौँ अमृत से सने हुए दो सुन्दर खिरौरे हैं। अथवा जान पड़ता है, कि 'ब्रह्मा (क-दू = क-एव = ब्रह्मा-एव ) ने दून सु-रंग खिरौरों को बाँधा है', यह अर्थान्तर हो सकता है ॥ तिस बायें कपोल के ऊपर एक तिल चिक है। उस तिल को जो देखता है, सो (उस को दीप्ति से) तिल तिल भस्म हो जाता है, वा देखने से वह दर्शकों के नेत्र में ऐसा समाय जाता है, कि उस के तिल तिल (अङ्गावयव ) में जटित हो जाता है, अर्थात् आँख में तिल समा जाने से वह उस आँख से जिस अङ्गावयव को देखता है, वहाँ वह तिल-ही देख पडता है। वा जो उस तिल को देखता है सो तिल-तौर (तिल- रूपौ तौर) से भस्म हो जाता है ॥ सामुद्रिक-शास्त्र में प्रसिद्ध है, कि पुरुष को दक्षिण और स्त्री को वाम भाग में तिल, मशा, इत्यादि चिह शुभ-फल-दायक हैं। दूसौ लिये कवि ने बायँ का ग्रहण किया है। और स्वाभाविक धर्म है, कि नायिकाओं के वायें गाल का तिल विशेष छवि-मय हो नायकों के मन को विशेष से मोहित करता है। दूस हेतु और अवयवाँ को छोड गाल-हो का ग्रहण किया गया। कवियों को तिल- खमित वाम कपोल के ऊपर अनेक उत्प्रेक्षा है, जैसा किसी ने कहा है कि 'प्यारी तेरे गाल पर मोहत है तिल श्याम । मानों चंद बिछाय के सालिगराम ॥'