पृष्ठ:पदुमावति.djvu/२९५

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१९६० सुधाकर-चन्द्रिका। २०५ = एक - कोमल = मृदु। पान = पर्ण, ताम्बूल का। अधारा = आधार = अवलम्बन। साव-भुअंगिनि = श्याम-भुजङ्गिनी = काली नागिनि। रोवाँवली =रोमावली रोम-पति। निकसि निःकसित हो कर = निकल कर । मजूर = मयूर = मोर पक्षौ । पाँतौ = पति । चंदन- खाँभ = चन्दन-स्तम्भ = चन्दन का खंभा । बास = वास = सु-गन्ध । माती=मत्ता = मात। कालिंदरि = कालिन्दी कलिन्द को कन्या = यमुना नदी। सताई = सन्तप्त हुई दुःखित हुई। पयाग = प्रयाग = तीर्थ-राज, जो अलाहाबाद में प्रसिद्ध है। अरदल स्थान का नाम, जहाँ पर यमुना गङ्गा से मिली है। उस प्रान्त को प्रयाग में अभी तक अरदुल वा अरिल कहते हैं। अरदूल अडल = अड जाने-वाला, वा अड जाने- वाली। जैसे यह 'घोडा अडल है'। वहाँ पर यमुना अड गई है, दूसौ से जान पडता है, कि उस स्थान का नाम, अरदूल पड गया है। कुंडर कुण्ड । बानारसौः बनारस का = काशी का। बानारसी कुण्ड = काशी करवट का कूआँ । [यह कुआँ ज्ञान- वापी के पूर्व-उत्तर की ओर पास-ही में है। आगे लोग इसी स्थान में 'काशी- मरणान्मुक्तिः', इस विश्वास से श्रात्म-हत्या करते थे। यह ऐसे गुप्त-स्थान में है, कि अब भी बहुत से पण्डे यात्रियों को वहाँ ले जा कर सब कुछ हरण कर लेते थे। (यात्रियों को पूजा के बहाने दण्डवत कराते थे, जब यात्री दण्डवत् करता था, तब कई मन के पत्थर के नादिया को, जो वहाँ अब तक मौजूद है, उस के ऊपर रख देते थे। यात्री वेचारा प्राण के भय सब कुछ दे देता था)। मैं जब दर्भङ्गा राजा की पाठशाला में अध्यापक था, तब प्रायः उसी राह से आने जाने में, यात्रियों के मुख से यह कु-रौति की कथा सुन, उस के निवारणार्थ बडा आन्दोलन मचाया। तब से सर्कार की ओर से अब वहाँ पर सिपाहियों का पहरा रहता है, और उस स्थान की चाभी थाने में रहती है। और वह स्थान भी प्रति सोमवार को सन्ध्या समय पूजा के लिये खोला जाता है, फिर बंद कर दिया जाता है। सउँह = संमुख । मौचु = मृत्यु । सिर = सिरा = अग्र-भाग । करवत तनु = शरीर । करसो=कर्षित को= खिंचवाई। मौझ = सौझ गये = पक गये। श्राम = श्राशा = उम्मेद। धूर्व = धूम = धूआँ । चूंटि = घाँट कर = पौ कर। उतर = उत्तर निरास = निराशा ना-उम्मेद ॥ (पद्मावती का) पेट जानौँ पत्र पर चन्दन लगा हुआ है, अर्थात् सु-गन्धित पेट ऐसा पतला है, जानों पतले कागज (पतर = पत्र ) पर चन्दन लगाया हुआ है, जिस से 1 कर-पत्र =ारा। तन = =जवाब।