२१२ पदुमावति । १० । नखसिख-खंड । [११८ = दोनों (खण्डों) के बीच (वह) लङ्क (तन्तु ) तार रह गया है, अर्थात् जो विना टूटा तन्तु उन दोनों खण्डों के बीच रह गया है, उसी के सदृश वह लङ्क है ॥ सो (वह पद्मावती) (जिस समय) हृदय को मोरती है, (मोड, अर्थात् स्वभावतः दूधर उधर छाती को हिलाती है), (उम समय केवल छातौ-हौ के भार से) वह तागा (= = तन्तु- रूपौ लङ्क) चलने लगता है, अर्थात् हिलने लगता है। (सो चलने के समय पृथ्वी में) पैर देते (वह दोनों खण्डों में ) लगा हुआ तागा (लङ्क-तार) कैसे (सर्वाङ्ग का भार) सह सकता है, (यह परम श्राश्चर्य है) ॥ हे राजा (राजन) (उस लङ्क को) क्षुद्र- घण्टिका (करधनी) (अपनी मधुर धुनि से) नरों को मोह लेती हैं, वा नल को मोह लेती हैं। उन को धुनि ऐसौ सोहावनौ लगती है) जानौँ इन्द्र के अखाडे (वर्ग) से (कोई वाद्य विशेष श्रा कर, दैवी शक्ति से ) बजता है ॥ (अथवा उस को धुनि ऐसौ मनोहर जान पडती है), मानौँ कामिनी ( काम को उत्पन्न करने वाली मनो-हारिणे युवतियाँ) वीणा को लिये (गहे) सब राग और रागिनियों को गाय रही हैं। मगौत-शास्त्र में राग छ हैं और एक एक राग को छ छ रागिनी भार्या हैं इस प्रकार सब रागिनी छत्तीस हैं। छ राग, मालव १ । मल्लार २। श्रीराग ३ । वसन्त ४ । हिन्दोल (= हिंडोल) ५ । कर्णट ६ । हैं। मालव को भार्या छ रागिनी-धानमो (= धनास्रो) १ । मालसौ २ । रामकौलौ ३ । सिम्बुडा ४ । श्राशावरौ ५ । भैरवी ६ । मल्लार को भार्या - बेलावली (= बिलावल ) १ । पूरवी (= पुर्बो) २। कानडा (= कान्हरा) ३ । माधवी ४ । कोडा ५ । केदारिका (= केदारा) ६ । श्रौराग को भार्या - गान्धारी १। सुभगा २। गौरौ ३ । कौमारिका ४ । बेलोयारौ ५ । वैरागी ६ । वसन्त को भार्या - तुडौ (= टोडी) १ । पञ्चमी २। ललिता ३ । पटमञ्जरी ४ । गुर्जरी (= गुजरौ) ५। विभामा (= विभास ) ६ । हिन्दोल को भार्या - मायूरौ १ । दौपिका २ । देशकारौ ३ । पाहिडौ ४ । बराडौ ५ । मोरहाटौ ६ । कर्णाट की भार्या - नाटिका १ । भूपालौ २ । रामकेली (= रामकली) ३ । गडा ४ । कामोदा ५ । कल्याणी ६।
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