पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३०१

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११] सुधाकर-चन्द्रिका। २११ - - तार कस्मात् = कयाँ T = । लागा=लगा त्रा छुदर-घंट मोहहिं नर राजा। इंदर-अखाड आइ जनु बाजा ॥ मानउँ बौन गहे काविनी। गााहिँ सबइ राग रागिनी॥ दोहा। सिंघ न जीतइ लंक सरि हारि लीन्ह बन बास । तेहि रिस रकत पिअइ मनुस खाइ मारि कइ माँस ॥ ११८॥ लंक =लङ्क =कटि = कमर । पुहुमि भूमि = पृथ्वी। श्राहि = श्रास्ते है। काह = किसी को। केहरि = केसरी= सिंह। ता-ह= तथा-हि = तौ-भौ। बमा = बरै = वटर। झोनी = क्षीण = पतलौ। खोनी = चौण। परिहमि = परिहास से । डंक प्रार। डमा दंशित करते हैं डम लेते हैं। नलिनि = नलिनी = कमलिनी, यहाँ कमल का नाल । तन्तु | तागा = सूत तन्तु। पग = प्रग = पैर। कित = कुतः जुडा ऊश्रा बंधा हुआ। कुदर-घंट= क्षुद्र-घण्टिका दार करधनी। नर = मनुष्य, वा नर = नल राजा। इंदर = इन्द्र । अखाडा = अक्षालय = अक्षावाट = क्रीडाग्रह = खेल कूद का घर । बाजा बजा है। बौन = वीणा । काविनी कामिनी वेश्या । गात्राहि = गावहिँ = गाती है। राग = छ राग, जो कि सङ्गीत-शास्त्र में प्रसिद्ध हैं। रागिनी = रागिणी, छत्तीस हैं। ये भी सङ्गीत-शास्त्र में प्रसिद्ध हैं । सिंघ = सिंह। सरि = मादृश्ये = साम्य में । हारि = हार कर। रिम = रोष = क्रोध । रकत=रक्त लोह। मनुस मनुष्य = श्रादमौ । खादू = खाता है। माँम मांस। पृथ्वी में (पद्मावती के कटि) ऐमो किसी को कटि नहीं है, अर्थात् वह कटिं अनुपम है। (यदि उस कटि के मदृश) सिंह (केहरि) को कह, तथापि ( वास्तव में विचार करने से सिंह को कटि) उस कटि के सदृश नहीं है, (क्यों कि सिंह को कटि तो बडे बडे रोओं से भरौ भयङ्कर देख पडती है, और यह निाम सूक्ष्म क्षुद्र-घण्टिका- महित कटि बडे भाग्य से देख पडतो है)। जगत् में (लोम) व” को कटि को ( वहुत ) पतली (झौनौ ) वर्णन करते हैं, (परन्तु ) तिस से भी अधिक पतली (चीण) ( पद्मावती को) कटि (लंक ) है ॥ (जगत् में लोगों ने यह कह कर, कि 'तुमारौ वैसी पतली और मनोहर कटि नहीं है जैमो, कि पद्मावती को है', ब” का परिहास किया, अर्थात् हसौ किया। मो तिमौ परिहास (के ताप) से बरै पौलो हो गई, (और खिमिश्रा कर ) डंक लिये लोगों को डसने लगी। (यह कवि को उत्प्रेक्षा है) ॥ (जान पडता है, कि) मानौँ कमल-नाल (नलिनी) के दो खण्ड हुए हैं, और उन - .