१२०] सुधाकर-चन्द्रिका। २९० माँथइ भाग को दहुँ अस पावा । कवल-चरन लैइ सौस चढावा ॥ चूरा चाँद सुरुज उँजिबाग। पाइल बीच करहिं झनकारा॥ अनवट बिछिपा नखत तराई। पहुँचि सकइ को पाइन ताई ॥ दोहा। बरनि सिँगार न जानेउँ नखसिख जइस अभोग। तस जग किछू न पाण्उँ उपम देउँ ओहि जोग ॥ १२० ॥ इति नखसिख-खंड ॥१०॥ - पाट= पट्ट = =तक नितंब = नितम्ब = चूतर । लंक = लङ्क = कटि = कमर । सोभा = शोभा। गज-गवन = गज-गमन = हाथी के ऐसौ चाल । जुरे = जुटे हुए = सटे हुए। जंघ = जङ्घ । केला कदलौ = केरा । फेरि = घुमा कर = उलटा कर = फिरा कर । लाए = लगाये हैं। कवल-चरन कमल-चरण कमल के ऐसे पैर । अति-रात अति-रक्त = अति लाल । पौढा। देाता = देवता । पगु प्रग = पैर। चूरा = चूडौ के ऐसा पाव का श्राभूषण = छडा। पादल = पायल = पायजेब, जो कि चूरा के नीचे पैर में पहना जाता है। झनकारा झणत्कार झन झन ऐमा झन-कार । अनवट = पैर के अंगूठे का श्राभूषण । बिछिश्रा = वृश्चिक (बिच्छी ) के आकार का पैर के अंगुलियों का श्राभूषण । नखत = नक्षत्र । तराई = तारा-गण । पादून = पाय (पैर) का बहु-वचन । ताई = = तदन्त ॥ सिँगार = ङ्गार। जदूस = जैसा = यादृश । अभोग = आभोग = भोग-योग्य, वा अभोग = विना भोग किया, अर्थात् अकूत (पवित्र) । तस = जगत् । वा, जग = जग कर = सावधान हो कर जाग्रित हो कर। उपम = उपमा। जोग = योग्य (कवि कहता है, कि अब) नितम्ब का वर्णन करता हूँ, जो कि लङ्क को शोभा है, अर्थात् जिस नितम्ब-हौ के कारण कटि सोहतौ है। (यदि स्थूल नितम्ब न हो तो कृश-कटि को कुछ सुन्दरता-ही न प्रगट हो)। और (उस स्थूल नितम्ब-ही के कारण पद्मावती में ) गज के ऐमौ चाल है, जिसे देख कर, सब कोई लाभाय गये हैं। ( अर्थात् स्थूल नितम्ब-हौ के भार से पद्मावती को मन्द मन्द चाल गज-गमन-मौ जान पडतो है ) ॥ जुटे हुए, अर्थात् सटे हुए (दोनों) जंघे अत्यन्त शोभा को पाये हुए हैं। तादृश = तैसा 1 जग= = लायक॥ 28
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