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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३०८

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२१८ पदुमावति । १० । नखसिख-खंड । [१२० ( उन दोनों को ऐसौ शोभा है), जानों केले के खंभे फिरा कर, अर्थात् उलटा कर जिम में मूल ऊपर की ओर और अग्र नीचे की ओर हो (नितम्बों में) लगाये हुए हैं ॥ कमल के ऐसा चरण, विशेष कर के अत्यन्त रक्त है, अथवा कमल (चिन्ह ) के सहित चरण, विशेष कर के अत्यन्त रक्त है, जो कि (मदा) पाट-ही पर रहता है, पृथ्वौ को (कभी ) देखा-ही नहीं ॥ (चलने के समय भूमि के आघात से चोट न लग जाय, दूस लिये) देवता लोग (उस ) पैर को हाथो हाथ लिये रहते हैं। और जहाँ ( कहौं पद्मावती) पैर धरती है, (उस स्थान को पारम-रूपी पाद-स्पर्श से विशिष्ट देव-पौठ समझ, वे देवता लोग ) तहाँ, अर्थात् उस स्थान में, (अपने को कृतार्थ होने के लिये अपने ) शिर को देते हैं, अर्थात् शिर को रगडते हैं | कवि कहता है, कि जिस पैर के पड जाने से स्थान को ऐसौ महिमा हो गई, कि देवता लोग वहाँ शिर रगडने लगे, तो देखें, कि कौन माथे में ऐसी भाग्य को पाया है, कि (उस साक्षात् ) कमल-चरण को ले कर (अपने ) शिर पर चढावे, अर्थात् धन्य उस पुरुष को भाग्य है, जो कि उस कमल-चरण को ले कर अपने शिर पर रक्खे ॥ (जिस पैर के) चूरा के बीच चन्द्र और पायजेब (पाइल) के बीच उज्ज्वल सूर्य ( रात दिन ) झणत्कार शब्द करते हैं, अर्थात् चूडा के मिष चन्द्र और पायजेब के मिष सूर्य, उस पैर के यहाँ श्रा कर, उस की रक्षा के लिये दिन रात झणत्कार-शब्द-व्याज से चौकीदारों के ऐसे पुकारा करते हैं । और अनवट, (जो कि पैर के अंगूठे के नख के ऊपर बैठी है) और बिछिया, (जो कि पैर के और अँगुलियाँ के नख के ऊपर हैं ) वे सब जानौँ ( उस पैर की रक्षा के लिये ) नक्षत्र और तारा-गण हैं । ( सो जिस पैर की रक्षा के लिये जहाँ चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र और तारा-गण चौकीदार हो कर, रात दिन लोगों को सावधान करने के लिये झणत्कार- शब्द-व्याज से पुकारा करते हैं, तहाँ भला उन) पैरों तक कौन पहुँच सकता है। कवि का आशय है, कि जिन पैरों की ऐसी कडी रखवाली हो रही है, उन के निकट पहुँच कर, अवयवों का देखना तो दूर है, किन्तु दूर से खडे हो कर, नेवौँ से एक वेर उन अवयवाँ को झाँकी ले लेना भी चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र और तारा-गणों के युगपत् तेजः-पुञ्ज ये चका-चाँधी के कारण सामर्थ्य से बाहर है, तो भला जहाँ दृष्टि तक नहीं पहुँच सकती, मन, वचन से भी जो पैर पर-ब्रह्म के ऐमा परे है, (किन्तु पर-ब्रह्म से भी बढ कर है, क्योंकि उपनिषदों में पर-ब्रह्म के विराटाकृति के नेत्र, चन्द्र और सूर्य, कहे हैं, वे यहाँ चौकीदारी में नियुक्त हैं ), उस के अवयवों का वर्णन मेरो प्राकृत-बुद्धि