२२२ पदुमावति । ११ । पेम-खंड । । [१२१ - १२२ उच्यते । पडा राजा डूब उतरा रहा है, इसी कारण राजा को कभौं चेत हो जाती है और कभौं वे-होशी में गाफिल पड़ा रहता है॥ (कवि कहता है, कि) प्रेम-व्यवस्था मरण से, अर्थात् मरणा-ऽवस्था से, भौ कठिन है, (क्योंकि मरणा-ऽवस्था में तो प्राणौ दुःख छुटकारा पा जाता है, परन्तु दूस प्रेमा-ऽवस्था में तो) न जीव जाता है, और न दसई अवस्था अर्थात् मरणा-ऽवस्था पाती है। अर्थात् प्राण तो निकलता नहौं, जिस से मरणा- ऽवस्था हो कर, प्राणे इस दुःख से छुटकारा पावे; किन्तु यह जीव विरहा-ऽग्नि से तप्त हो कर इधर से उधर तडपा करता है, जिस से रात दिन दुःख बढता-ही रहता है। स्मृति में नौचे लिखौ आठ अवस्थायें हैं। कौमारं पञ्चमाब्दान्तं पौगण्डं दशमावधि । कैशोरमापञ्चदशात् यौवनं च ततः परम् ॥ भाषोडशाभवेदालस्तरुणस्तत वृद्धस्तु सप्ततेरूध्वं वर्षों यान् नवतेः परम् ॥ (दशमस्कन्ध भागवत, १२ वें अध्याय की बालप्रबोधिनी टौका) कौमार १ । पौगण्ड २ । कैशोर ३ । यौवन ४ । बाल ५ । तरुण ६ । वृद्ध ७ । वर्षीयान् (अति-वृद्ध) ८॥ भारत मोक्ष धर्म को टौका में नीलकण्ठ ने एक गर्भा-ऽवस्था और दूसरी अन्त में मरणा-ऽवस्था मान कर दश अवस्था कहा है, इसी लिये दशमा-ऽवस्था से मरणा-ऽवस्था लिया है। (राजा को ऐसी दशा हो गई है) जानौँ (किसी) लोहार ने (उस के) जीव को लिया है, और (वह लाहार ) तिसे (जीव को) हरता तरासता है, अर्थात् कतर छाँट करता है। (राजा के) मुख से इतना, अर्थात् कुछ भी बोल नहीं पाती है, अवाक् हो गया है (केवल ध्याना-ऽवस्था में पद्मावती से यही प्रार्थना) करता है, कि त्राहि त्राहि, अर्थात् रक्ष रक्ष, (रक्षा करो रक्षा करो, प्राण बचावो प्राण बचावो) ॥ १२१॥ चउपाई। जहँ लगि कुटुंब लोग अउ नेगी। राजा राइ श्राप सब बेगी। जावत गुनी गारुरौ गारुरी आए। ओझा बइद सयान बोलाए ।
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