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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३१३

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१२२] सुधाकर-चन्द्रिका। २२३ चरचहि चेसटा परख हिँ नारी। निअर नाहिँ अोखद तेहि बारी ॥ हड राजहि लखिमन कइ करा। सकति-बान मोहइ हिy परा॥ तहँ सो राम हनिवत बडि दूरौ। को लैइ आउ सजीअनि मूरौ ॥ बिनउ करहिँ जेते गढ-पतौ। का जिउ कौन्ह कउनि मति मती ॥ कहउ सो पौर काहि बिनु खाँगा। समुद सुमेरु आउ तुम्ह माँगा ॥ दोहा। धावन तहाँ पठावह देह लाख दस रोक । हइ सो बेल जेहि बारी आनहु सबहिं बरोक ॥ १२२ ॥ '= उपाध्याय = जहँ लगि = जहाँ तक। कुटुंब = कुटुम्ब = घर के प्राणो। लोग = लोक = प्राणी। नेगी = नेग लेने-वाले = मान्य-लोग = बडे लोग = पूज्य । रादू = राय = राजा से कुछ न्यन जिन की प्रतिष्ठा है। वेगी= बेग = शीघ्र । जावत = यावन्तः = जितने । गुनी = गुणी। मारुरी= गारुडिक = मर्प-विष उतारने-वाला। श्रोझा भूत-प्रेत उतारने- वाले। बदद = वैद्य । मयान = सज्ञान = चतुर । चरचहि = चरचते हैं = उपचार करते हैं। चेमटा = चेष्टा = चेहरा। परखहिँ = परखते हैं = परीक्षा करते हैं। नारी नाडी । निर = निकट पास = नगौच । श्रोखद = औषधि । बारी= वाटिका। लखिमन = लक्ष्मण, राम के भाई। करा= कला = दशा। सकति-बान = शक्ति-बाण, जिस से मेघनाद ने लक्ष्मण को मारा था। हनिवत = हनुमन्त = हनुमान् । श्राउ = श्रावे । सजीअनि = सञ्जीविनी = जिलाने-वालो। मूरी= मूली = मूलिका = जडी। विनउ विनय। कउनि क नु = कौन । मति = बुद्धि । मती = मत हुई = संमत हुई = स्वीकृत हुई। पौर = पीडा = पौरा। खाँगा = खाङ्ग = शून्य = घटा ॥ धावन = । रोक रोकड = रुपया। वेल = वल्लो = लता । बरोक = बलौकः = बल का घर, अर्थात् सेना ॥ (राजा को यह दशा सुन कर) जहाँ तक कुटुम्ब, प्राणी, और नेगी, राजा (जो कि रत्न-सेन के आश्रित थे), और राय, सब कोई शीघ्र (राजा को देखने के लिये ) पाये ॥ (राजा को मूर्छित देख, लोगों को बीमारी को बाहट न लगने से ) जितने गुण (जो कि यन्त्र, मन्त्र, टोटका इत्यादि से अच्छा करते हैं), और गारुडिक