सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२३४ पदुमावति । ११ । पेम-खंड। [१२६ . i वालक शम्मतबजेर नाम से बड़ा सिद्ध हुआ, अपने नाना को भी अपना शिव्य बनाया, और जगत् में बडा-ही प्रसिद्ध हुआ। सूफी संप्रदाय के मुसल्मान लोग मनसूर को अपने मत का प्राचार्य मानते हैं । सो महम्मद कवि का अभिप्राय है, कि जैसे मन्सूर को पारौर में ब्रह्म-मय होने से शूली चढने पर भी प्रति रक्त-विन्दु में ब्रह्म-ही ब्रह्म समाय गया था, उमौ प्रकार जिस को शरीर में प्रेम समाय जाय, जिस में शूली चढने पर और मर जाने पर भी प्रति रक्त-विन्दु से प्रेम, प्रेम, वा जिम के लिये प्रेम लग गया हो, उस के नाम को ध्वनि निकले, वह दूस प्रेम-पहाड पर चढ सकता है॥ (मो हे राजा) क्या कंथा (माधुत्रों को गरुत्रा रंग को गुदडी जो गले में डाले रहते हैं) पहनता है, अर्थात् पहन सकता है। (क्यों कि) तेरे तो घर-ही (शरीर-हौ) के मध्य दश राह हैं, अर्थात् दशो ( हाथ, पैर, नेत्र, कान, नाक, त्वचा, गुदा, जिहा, वाणी और लिङ्ग) इन्द्रियाँ अपनी अपनी राह में ले जाने के लिये तुझे प्रतिक्षण खींच रही हैं, तो यूँ क्याँकर प्रेम-मार्ग में जा सकता है, इस लिये गुदडी पहन कर, तेरा योगी का बनना व्यर्थ है॥ काम, क्रोध, तृष्णा, मद और माया ये पाँचो चोर तेरी काया को नहीं छोडते हैं, अर्थात् रात दिन तेरी शरीर के बीच में बैठे हैं ॥ (मो) जिस घर (शरीर) के बीच में (दो आँख, दो कान, दो नासिका के पूरे, एक मुख, एक लिङ्ग और एक गुदा ये) नव सैंध हैं (चाहे जिस राह से पाँचो चोर पैठ सकते हैं), ( सो उन सेंधों को राह से वे पाँचो घुस कर) रात में, अर्थात् अज्ञानान्धकार से पूरित तेरे हृदय में, उजेला कर, अर्थात् हम चोर हैं ऐसा प्रत्यक्ष डङ्का बजा कर, तेरे घर (शरीर) को मूस रहे हैं (और तुझे खबर नहीं )। फिर हूँ क्या योगी बन कर, प्रेम-मार्ग में चलने को तयार होता । पहले घर में घुसे पाँचो चोरों को मार कर, अपना घर शुद्ध कर ले, तब उस में प्रेम-रत्न रखने की इच्छा से प्रेम के ढूंढने के लिये योगी बने तो उचित है; अन्यथा केवल विडम्बना मात्र है ॥ (मो अज्ञान) निशा मैं भोर हुआ श्राता है, अर्थात् रात बीतती जाती है, अब भी, हे अज्ञानी (राजा), जाग । जब (पाँचो) चोर ( घर को) मूस ले जाते हैं अर्थात् तेरी शरीर को नष्ट कर जायँगे, (तब) फिर (सेवाय पछताने के और) कुछ हाथ न लगेगा ; अर्थात् शक, राजा का गुरु बन कर, उपदेश देता है, कि माया-रूपौ निशा में पड़ा पड़ा मत सो । अब जाग, और अपने शरीर की ओर चेत कर, जिस में पाँचो चोर बे-उर से तेरे मनो-मणि को लूट रहे हैं, और तुझे लट्टू मा चारो ओर