पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३३०

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४ि० पदुमावति । १२ । जोगी-खंड । [१२८ - .. कन्या सदृश चिन्ह रहते हैं ; तन्त्र-शास्त्र के मत से शिव-मन्त्र जपने के लिये इस को माला बहुत पवित्र समझी जाती है। इस रुद्राक्ष के दाने में खरबूजे की फाँक ऐसी कई रेखा होती हैं, उन्हें मुख कहते हैं; जप में प्रायः पञ्च-मुखी रुद्राक्ष का विशेष माहात्म्य है। कहावत है, कि जैसे जिस के घर में वामावर्त्त शङ्ख रहे उस के घर में सदा लक्ष्मी का निवास रहता है, उसी प्रकार जिम के गले में एक-मुखी रुद्राक्ष बँधा हो उस के ऊपर शस्त्र की शक्ति नहीं काम करती। एक-मुखी रुद्राक्ष की परीक्षा के लिये लोग अंडे के गले में इसे बाँध कर भेंडे के गले के ऊपर बल-पूर्वक तलवार मारते हैं; यदि तलवार से भेंडे के गले में कुछ भी चोट न लगे तो समझना चाहिए, कि सच्चा एक-मुखी रुद्राक्ष है। रुद्राक्ष नेपाल और दक्षिण-प्रान्त में बहुत होता है। अधारी= आधार = काठ के डंडे में लगा काठ का पौढा, (श्रासा) जिसे योगी लोग प्रायः लिये रहते हैं ; जहाँ कहाँ इच्छा हुई तहाँ भूमि पर डंडे को खड़ा कर उस पौढे पर बैठ जाते हैं। जैसे विना अभ्यास किये बाइसिकिल (bicycle) पर लोग नहीं बैठ सकते, तैसे-ही अभ्यास के विना इस पौढे पर भी नहीं बैठा जाता। कंथा = गरुए रंग के सुजनी का चोलना जो गले में डाल देने से अङ्ग को ढाँक लेती है। इसे योगौ लोग गुदरी कहते हैं ; फटे, पुराने चिथडौँ को जोड जोड कर इसे बनाते हैं। डंड = दण्ड = डंडा = साँटा, जो झाड फूंक करने के लिये योगौ लोग रखते हैं ; यह हाथ डेढ हाथ का काले रूलर (मोधी रेखा खींचने के लिये सौधौ और लम्बी गोल काष्ठ को पालाका) के ऐसा होता है। बहुत से योगी से भैरव-नाथ का बहुत से गोरख-नाथ का साँटा कहते हैं । गोरख = गोरक्ष-नाथ = गोरख-नाथ एक प्रसिद्ध सिद्ध अवधूत जो कि मछंदर-नाथ (मत्स्येन्द्र-नाथ ) के प्रधान शिष्य थे। कहावत है, कि शिष्य हो कर गोरख-नाथ तप के लिये वन में चले गये और बहुत वर्षों पर लौटे। इस बीच में मदंदर-नाथ विषय-वासना में लिप्त हो कर, अपना योग भ्रष्ट कर दिया था। जिस समय गोरख अपने गुरु के द्वार पर पहुंचे, उस समय गुरु मछंदर जौ एक वेण्या को नाच देख रहे थे। दूस लौला को देख गोरख ने अपनी सिद्धता से ऐमो लौला कौ, कि, तबलची कैसा-हू, यत्न करे, परन्तु तबले से 'जाग मछंदर गोरख आये', दूस आवाज को छोड दूसरौ श्रावाज-हौ न निकले। अन्त में मछंदर को ज्ञान हुआ, और गोरख को बुला कर कहा, कि अब तँ मेरा गुरु हुआ। गोरख-पन्थियाँ के मत से नव-नाथ हैं। उन के नाम नौचे लिखे हैं -