पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१२८] सुधाकर-चन्द्रिका। २४२ कहर - एक-नाथ १ । श्रादि-नाथ २ । मत्स्येन्द्र-नाथ ३ । उदय-नाथ ४ । दण्ड-नाथ ५ । सत्य- नाथ ६ । मन्तोष-नाथ । कूर्म-नाथ ८ । जलन्धर-नाथ ८ । दून नवाँ को उत्पत्ति गोरख- नाथ (जिन्हें श्री-नाथ भी कहते हैं ) से कहते हैं, गोरख-हो के नव-विध ये अवतार हैं। गोरख-पन्थियों का सिद्धान्त है, कि गोरख-ही भिन्न भिन्न समय में अवतार ले कर भिन्न भिन्न नाथान्त नाम से नव नाथ हुए हैं, और गोरख-ही अनादि अनन्त पुरुष हैं, उन्हीं को इच्छा से ब्रह्मा, विष्णु, महादेव इत्यादि हुए हैं। कहा = कहदू का भूत-काल, कथयति । मुंदरा = मुद्रा, जो कि स्फटिक वा हाथी-दाँत को मुद्रिकाकार होती है, और कान को चिरवा कर उस में जिसे गोरख-पन्थी पहनते हैं । गोरख-पन्थी लोग एक शुभ-दिन (प्रायः वसन्त पञ्चमी) में कान को चिरवा कर मन्त्र के संस्कार से इस मुद्रा को पहनते हैं, और कान पक न जाय दूस भय से जब तक घाव अच्छा नहीं होता केवल फलाहार करते हैं। उन लोगों को निश्चय है, कि स्त्रियों के दर्शन से भी घाव पक जाता है, इस लिये घाव अच्छे होने तक एकान्त एक कोठरी के भीतर रहते है, जिम में स्त्रियाँ का दर्शन न हो। स्रवन = श्रवण = कान। जप-माला = जप करने के लिये माला = रुद्राक्ष-माला । उदपान = उदक (जल) पान (पौने) का पात्र = स्कन्ध = कंधा। बघ-छाल = व्याघ्र-छाल = व्याघ्राम्बर = बघंबर = व्याघ्र का चर्म । पावरि = पामरौ = पादुका = खराऊँ वा लतरौ। पाँय = पद । छाता = छत्र । खप्पर = खर्पर = मट्टी के घडे का फोरा हुअा एक खण्ड, जिस में भिक्षा को योगी लोग लेते हैं ; अब यह दर्थ्यायो नरियर का बनता है। बहुत से योगी लोग काँसे का भी भिक्षा-पात्र रखते हैं, इस लिये खप्पर को काँमा भी कहते हैं। होली में योगोडे में गुरु लोग चौडे मुह के मट्टी के घडे में भाग को रख कर जादू से उसे हाथ पर लिये फिरते हैं, उस घडे को भी खप्पर कहते हैं। भेस = वेष = सूरत । रक्त = लाल = गेरुश्रा रँग ॥ चला = चल (चलति ) का भूत-काल । भुगति = भुति = भोग। माँग माँगने। साजि = सज्जयित्वा =माज कर । शरीर । जोग = योग्य । हिरदद् = हृदय । बिजोग = वियोग = विरह ॥ (होरा-मणि शक से सब बात को सुन कर) राजा (रत्न-सेन) ने राज्य को त्याग दिया, (और पद्मावती के पाने के लिये ) योगी हुश्रा (बना )। (वह) वियोगी (विरही) हाथ (कर) में किंगरौ को पकडा ॥ (जैसे योगी लोग अपनी शरीर की खबर नहीं लेते, तैसे-ही राजा को) तनु (भी) बे-खबर हो गई, (और) मन बौरहा हो गया, कमण्डलु । काँध .. - राता कया=काय= काया 1 31