पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१३२] सुधाकर-चन्द्रिका। २५१ 9 9 1 हैं, अर्थात् मनुष्य के पाप-पुण्य को सदा साक्षी देने के लिये देखा करती हैं। और सूत सूत पर (सब अङ्ग) इस तनु में दोष-ही बोलते हैं, अर्थात् पारीर के प्रति अवयव दुष्ट-ही कर्म करने की चाह रखते हैं, (तो भला) कहो (कि) कैसे मोक्ष प्राप्ति होगी ।। ( मो, हे माता, सुन तो महौ) यदि राज्य और (सुख) भोग भले होते, अर्थात् इन्हीं से यदि जीव निस्तार पा जाता, (तो) (राजा) गोपी-चन्द (दून को त्याग कर) योग न साधते, (क्योंकि जब सुखोपभोग-हौ से मोक्ष-प्राप्ति हो तो कौन ऐसा मूर्ख है जो, कि अतिकष्ट-साध्य योग-साधन में शरीर को तपावे )। गोपौ-चन्द बङ्गाले के एक राजा थे, भर्तहरि को बहिन मैनावती दून को माता थी। इस प्रकार भर्तहरि के भैने गोपौ-चन्द हुए। गोरख-नाथ ने जिस समय भर्तहरि को ज्ञानोपदेश दिया था, उसी समय मैनावती भी गोरख-नाथ से दीक्षा ली थी, और गोरख-नाथ के अनुग्रह से समझ लिया था, कि संसार को विषय-वासना में फँसने से दूस जीव का निस्तार नहीं हो सकता। मैनावती बङ्गाले के राजा से व्याही गई थी, और इस को एक पुत्र गोपी-चन्द और एक कन्या चन्द्रावली ये दो सन्तान हुए थे। चन्द्रावली का विवाह सिंहल-दौप के राजा उग्र-सेन से हुआ था। पिता के मर जाने पर गोपी-चन्द बङ्गाले का राजा हुआ, और सुख विलास करने लगा। एक दिन पुत्र के शरीर को शोभा निरख, मैनावती ने सोचा, कि संसार को विषय-वासना में फंस जाने से मेरे पुत्र को यह कान्तिमान् शरीर इस के पिता के शरीर की नाई नष्ट भ्रष्ट हो जायगी। मो पुत्र को बुला कर, ज्ञानोपदेश दिया, कि बेटा, यदि अमर हो कर, जीवन-मुक्त हुअा चाहो, तो जलन्धर-नाथ से, जो दूस समय रमते रमते भाग्यवश तेरौ वाटिका में श्रा उतरे हैं, शिष्य हो, योग माधन करो। इस पर गोपी-चन्द को ज्ञान हुश्रा, और राज-पाट छोड कर, जलन्धर-नाथ से दीक्षा ले योग साधन के लिये कज्जलि-वन (कदलो-वन) चला गया, और सिद्ध हो गया, और पीछे से अपनी बहिन चन्द्रावली को अति विनती से उसे भी दीक्षा दे कर, योगिन बनाया। गोरख-पंथियों के सम्प्रदाय में जब कोई चेला हो कर, नया योगो बनता है, तब पहले गुरु को यह अाज्ञा होती है, कि अपने घर जा कर, अपनी पत्नी को माता कह कर, अन्न-भिक्षा माँगो, और जब वह देने लगे, तब उस से 'पुत्र भिक्षा लो' यह कहवा कर, भिक्षा ग्रहण करो। इस प्रकार वह नया योगी भिक्षा ले कर, उस भिक्षा को जब गुरु को देता है, तब गुरु को विश्वास होता है, कि दूस से योग मधेगा। मो जिस समय नया योगौ हो, योग के सब चिन्ह