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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३६४

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२५८ पदुमावति । १२ । जोगी-खंड । [१३४ अपने ) स्तनों को लिये (उन्हौं स्तनों से रात दिन राजा भर्तृहरि के) तरवे को सुहराया करती थौं, (परन्तु राजा भर्तृहरि ने एक सेवा को भी न स्वीकार किया और) योगी हो गया, (और) किमी (रानी) को संग न लिया ॥ धारा नगरी के राजा गन्धर्व-सेन को क्षत्रिया स्त्री से शङ्ख, विक्रम, और भर्तहरि, तीन पुत्र थे। राजा के मरने पर बडा पुत्र शङ्ख राजा हुआ। कुछ दिन बौते अवसर पा कर विक्रम, अपने विक्रम से शङ्ख को मार, श्राप राजा हुआ। विक्रम, बहुत वर्षों तक राज-सुखोपभोग कर, अपने छोटे भाई भर्तहरि को राज्य का भार मौंप, आप संसार के चरित्रों को देखने के लिये देशाटन करने को चला गया। भर्तृहरि राज्य को पा कर खूब विषय-वासना में भूले ; मोरह से रानियाँ से विवाह किया, जिन में अनूपा -देवी, चम्पा-देवी, पिङ्गला, और श्याम-देवी, ये प्रधान हैं। राजा के नगर में एक ब्राह्मण तपस्या करता था; तपः-सिद्धि होने पर उस के देवता ने एक अमर-फल दिया और कहा, कि जो इसे खायगा वह सदा अमर हो कर, युवा बना रहेगा। ब्राह्मण फल को ले कर घर आया और इस वृत्तान्त को अपनी ब्राह्मणो से कह सुनाया। ब्राह्मणौ वृत्तान्त को सुन कर, बहुत रोई और कहने लगी, कि दूस दरिद्रावस्था में फल खा कर, और अमर हो कर, अनन्त-काल तक मानापमान धो कर, भिक्षा माँगते माँगते, इधर उधर ठोकर खाना पडेगा, जिस से भला मैं मर जाना समझती हूँ। सो श्राप इस फल को किसी धनी के हाथ बैंचिये, जिस से अधिक धन मिले, और हम लोगों का सुख से जीवन निवहे। ब्राह्मण दूस बात को सुन कर, राजा भर्तहरि के पास गया, और उस फल का माहात्म्य सुनाया। राजा ने लाख रुपये पर उस फल को खरीदा। सन्ध्या समय उस फल को लिये राजा श्याम-देवी के घर आया, और फल को महिमा सुना कर, कहा, कि तुम मेरी सब रानियों से प्यारी हो, इस लिये मैं तुम्हें यह फल देता हूँ, और तुम दूसे खा जाना; खा जाने से तुमारा यह मनोहर यौवन ऐमा-ही मनोहर बना रहेगा। श्याम-देवी राजा के कोतवाल से मिली थी। राजा के चले जाने पर उस ने अपना प्राण-प्रिय समझ, उस फल को कोतवाल के हवाले किया, और कहा, कि दूस के खाने से तुम सदा अमर हो कर ऐसे-ही जवान बने रहोगे। कोतवाल उस फल को लिये अपने घर आया, और एक वेश्या को, जिसे वह प्राण से भी अधिक चाहता था, दिया, और कहा, कि दूस के खाने से तेरा यह मनोहर रूप ऐसा-ही अचल मनोहर बना रहेगा। वेश्या उस फल को लिये अपने घर आई,