पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३६७

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१३५] सुधाकर-चन्द्रिका। रोअहिं रानी तजहिं पराना। फोरहिं बलइ करहिँ खरिहाना॥ चूरहिँ गिउ-अभरन अउ हारू । अब हम का कह करब सिँगारू॥ जा कहँ कहाँ रहसि का पीज। साई चला का कर यह जीज ॥ मरइ चहहिँ पइ मरइ न पावहिं। उठइ आगि सब लोग बुझावहिँ ॥ घरी एक सुठि भाउ अँदोरा। पुनि पाछइ बीता होइ रोरा ॥ दोहा। माता - बाउर टूट मनइ नउ मोती फूट मनइ दस काँच । लीन्ह समेटि सब अभरन होइ गा दुख कर नाँच ॥ १३५ ॥ रोअ =रोदिति = रोती है। मता= मा =महतारी। बहर = वहो- लति = वहोलति = बहुरता है = फिरता है। बारा = बाल = बालक । रतन = रत्न = रत्न-सेन । चला = चल (चलति) का भूत-काल । भा= अभूत् वा अभवत् = भया = हुा। अधिभारा= अन्धकार । बार = बाल = बालक = बेटा। मोर = मेरा । रज = रजम् = रजो-गुण । वातुल = बौरहा। रत्ता = रक्त = संसक्त। बाउर-रत्ता वातुल-रक्त = बौरहे के ऐसा रक्त (वातुलवत्-रक्तः)। सुत्रा = शुक = सुग्गा । परबत्ता = पर्वतीय पर्वत का। पराना = प्राण । फोरहि = फोर (स्फोटयति) का बहु-वचन । बलदं = वलय = कङ्कण, यहाँ कङ्कणाकार काँच को चूरौ। खरिहाना = खड-स्थान = धान्य-राशि रखने का स्थान = खरिहान= जहाँ धान्य को काट कर एकट्ठाँ करते हैं। चूरहि = चूरदू (चूर्ण यति) का बह-वचन । गिउ-अभरन = ग्रीवा-श्राभरण = गले का गहना, हुमेल, हँसुली, टौक, दुलरौ, तिलरौ, इत्यादि। हारू हार = मोतियों को माला। करब = करेंगी (प्राकृत करअव्वम् = कर्त्तव्यम् )। सिंगारू = श्टङ्गार। रहसि =रहम

क्रीडा। कद = कर । पौऊ= प्रिय । जीऊ =जीव। मरदू = मरना। चहहिँ = चहदू

( चहति) का बहु-वचन । कोई इच्छति कोई पाली चघति से चहदू वना है ऐसा मानते हैं (२५७ पृष्ठ देखो)। पद = अपि = यहाँ परन्तु । उत्तिष्ठते = उठती है। अागि = अग्नि। बुझावहि = बुझावद् (बोधयति) का बहु-वचन। घरौ= घटी = घडी। सुटि = सुष्छु = अच्छी तरह से। अंदोरा = आन्दोलन कोलाहल । पाछदू = पश्चात् = पौछ । बौता =बौतद् (व्यत्येति ) का भूत-काल। रोरा=रोरुदा = अति-रोदन ॥ टूट = उठदू