पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३८४

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२७८ पदुमावति । १२ । जोगी-खंड । [१४० .. - , ही को अपनी मूर्खता से बडी नाव समझ उस के ऊपर बडी डार को धर कर, ले चलता है, जिस कर्म से डार-हौ बूड जाती है। एक का तात्पर्य है, कि आप लोग पक्ष से विहीन हैं, मो श्राप लोगों को सामर्थ्य नहीं, कि इस मार्ग को पूरा कर पद्मावती के देश में पहुँचें, और आप लोगों का माहस करना वैमा-हौ है, जैसे पत्ते के ऊपर डार ( शाखा) को धर उस को समुद्र-पार ले जाना ॥ (और) जैसे अन्धा अन्धे का साथी हो, (और ठीक) राह को न पावे (और लाचार हो कर उस अन्धे के ) साथ लगा होता है, अर्थात् हैरान होने पर भी उस अन्धे के साथ साथ लगा रहता है (तैसे-हौ यहाँ आप लोगों की दशा है), अर्थात् श्राप लोग इस समय अन्धे के सदृश मेरे हाथ में हैं, मैं जिधर चाहूँ उधर आप लोगों को फिरा सकता है। ( सो मैं पक्षी हूँ, श्राकाश-मार्ग से चाहे जिधर उड कर जा सकता हूँ; मेरे पीछे लगने से काम न चलेगा। राजन्) मति को सुनो, अर्थात् मुझ से मति लो। यदि (अपना ) कार्य पूरा करना चाहते हो (तो), (आगे) विजय-नगर में विजय-गिरि का राजा है। जहाँ, अर्थात् तिस को राजधानी में (अनेक जङ्गली) गाँड और कोल हैं, (उन से ठौक ठीक राह को) पूँछो। और (आगे) बाईं ओर अन्धक-टोला ( पडेगा) उस को छोड दो, अर्थात् बहक कर, उस की ओर न जावो ॥ (जिस ) दक्षिण (दिशा में चलना है उस राह को) दहनौ ओर तैलङ्गौ लोग रहते हैं, और उत्तर की ओर बीच में कर्णाटक लोग रहते हैं ॥ (श्रागे ) बीच में (माँझ), अर्थात् राह-ही में रत्नपुर, और सिंह-द्वार है (जहाँ लोग जगन्नाथ-पुरी जाते हैं)। झार-खण्ड पहाड को बायें दे कर अर्थात् बाई ओर छोड कर ॥ (और उस के) श्रागे बाई ओर उडीसा है, मो (उस ) बाट को भी बायें दो, अर्थात् उसे भी बाईं ओर छोडो, (इस प्रकार) दहिनावर्त्त दे कर, अर्थात् दाहिनौ-हौ ओर झुकते झुकते समुद्र के घाट पर उतरो ॥ १४ ० ॥ ऊपर जो अर्थ लिख पाये हैं वह परम्परा से देशों के नाम और स्थान विना जाने पुराने लोगों का है। प्राचार्य के समय जिन जिन देशों के जो नाम प्रसिद्ध थे उन के परिचय के लिये प्राचीन ग्रन्थों से ले कर, कुछ वृत्तान्त लिखते हैं। इस विषय में मुझे पूर्णतया सहाय, पण्डित भैरवदत्त, गवर्नमेण्ट क्वीन्स कालेज के पुस्तकालयाध्यक्ष ने दी है। दूस लिये उन को जहाँ तक धन्यवाद दें सब थोडा है। मृगारण्य जो कि १४१ वे दोहे में है और जहाँ पहले डेरा पडा 9