१४०] सुधाकर-चन्द्रिका। - 'मिरगारन मैंह भण्उ बसेरा' दूस पाठ के अनुसार, यह वह स्थान है, जहाँ पहले दिन नर्मदा तट पर लोग ठहरे। जो कि पहले विजय-नगर में था और आज कल नौमार में है। यहाँ तीन पर्वत के कुछ ऊँचे शिखरों के निवेश से नर्मदा के छोटे छोटे तीन खण्ड हो गये हैं। और वे शिखर एक पुल के तीन ताखे से जान पड़ते हैं जिन्हें हरिण सहज में कूद जाते हैं। दूसौ खिये इस का नाम हरिण-पाल पड़ा है। यह आज तक एक विशिष्ट तीर्थ समझा जाता है। (See Malcolm's Central India, Vol. I., p. 13). बिदर - बाँसवाडा, डाँगरपुर, परतापगढ, बरोदा, खानदेश इत्यादि सब बिदर में है, जैसा कि Cunningham साहब के प्राचीन भारतवर्षीय भूगोल के नक्शे से स्पष्ट है। और Col. Tod साहब के राज-स्थान, (Tod's Rajasthan, Vol. I., p. 166, ed. 2nd, 1877), नामक पुस्तक से भी विदित है। चंदेरी - ग्रन्थ-कार के समय बुंदेलों के अधिकार में थी। और इस की सीमा मालवा तक थी। परन्तु अब छोटा सा एक नगर ग्वालियर के राज्य में चंदेरी नाम का रह गया है, जिस का उत्तर अक्षांश २४°। ४२'। और ग्रीनविच से पूर्वदेशान्तर ७८°। ११ ॥ यहाँ को पगडी (मण्डोल) और डुपट्टे इत्यादि बहुत प्रसिद्ध हैं। और यह नगर अकबर के समय में मालवे के सूबे के बारह सर्कारों में से एक सर्कार था। उस समय दूम को दक्षिण-सौमा उज्जयन के सर्कार से मिली हुई थी। मरॉज, जो कि उज्जयन के निकट है, वह भी इसी के अन्तर्गत था। (See Thornton's Gazetteer, p. 194, and Āin-i-Akbari, Vol. II., pp. 201–203, Jarrett's translation). बिजय-गढ ग्रन्थकार के समय में नर्मदा के दोनों ओर फैला हुआ प्रसिद्ध राज्य था। परन्तु समय के फेर फार से अब एक छोटा सा नगर इन्दोर के राज्य में रह गया है, जो कि नर्मदा के दाहिने तट पर है। यह अकबर के समय, सूबे मालवा के बारह सर्कारों में से एक सर्कार था। इस का उत्तर अक्षांश और देशान्तर नौमार के अासन्न अक्षांश २२ । ३० । पू० दे० ७७। १'। ग्रन्थकार के कथना- नुसार यहाँ के गावने-वाले बहुत प्रसिद्ध थे। 'बोजानगर केर बड गुनौ' ऐसा रत्न-सेन के मभा-वर्णन में कहा है, जब कि अलाउद्दीन चढ आया था। यहाँ पर गाँड, भौल, और कोल बहुत रहते थे और यह देश नौमार से ले कर दक्षिण-पूर्व की ओर गोंडवाने के नाम से प्रसिद्ध था। आज कल खानदेश और उडीशा के मध्यगत देश
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