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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३९४

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२८८ पदुमावति । १३ । राजा-गजपति-संबाद-खंड । [१४२ .. .. (चित्तौर गढ का राजा) रत्न-सेन योगी यती हुआ है, अर्थात् योगी यती हो कर पाया है, भेंट करने आया ॥ (और विनीत हो कर कहा, कि) श्राप योगौ, (और) सब सेना (श्राप के) शिव्य, कौन द्वीप की सैर किया चाहते हैं ॥ (बहुत दिनों से लालसा थी, कि आप का दर्शन हो, मो) अच्छा हुश्रा (भलेह) (कि श्राप) आये, अब (मेरे ऊपर) अनुग्रह (माया) कौजिये ; और पहुनाई के लिये ( मुझे) श्राज्ञा दौजिये, अर्थात् मेरे ऊपर अनुग्रह कर मेरे आतिथ्य को खौकार कीजिये ॥ (दूस बात को सुन कर राजा रत्न-सेन ने कहा, कि) हे गज-पति, हमारे उत्तर को सुनिये; (इस में संशय नहीं, कि राज्य, धन, यश, प्रताप, कुल, गोत्र, गौरव इत्यादि में) हम तुम्ह एक-हौ हैं, अर्थात् कुल, गोत्र और राज्य-श्री के नाते से हम श्राप एक ही हैं, (समान में पहुनई करना शास्त्र-संमत-ही है, परन्तु इस समय मेरा ) भाव निराला है, अर्थात् मैं राज्य-श्रौ से विरक्त हो कर योगी हो गया है, और आप राज्य -श्री में अनुरक्त हैं, सो योगी और भोगो को कैसी पहुनाई, यह लोक-विरुद्ध है। (मो) जिस में यह भाव हो, अर्थात् जो तुमारे ऐसा राज्य-श्री में अनुरक्त हो, तिसे नवतो। (और) जो निर्भाव है, अर्थात् जो राज्य-श्री से विरक्त हो गया है, तिसे (जो श्रातिथ्य को) लगावो, अर्थात् उस का जो प्रातिथ्य करो (तो उसे ) नसावो, अर्थात् उस के तप को नाश करो, अर्थात् योगी को भोग-विलास की ओर ले जाना मानो उस के योग को नष्ट करना है ॥ (मो मेरे लिये) यही बहुत ( सत्कार है, जो श्राप से) जहाज को पाऊँ, और (श्राप के अनुग्रह से ) सिंहल-दीप को जाऊँ। अर्थात् श्राप यहाँ के प्रधान अधि-पति हैं, सो विना रोक-टाँक के जहाज इत्यादि के साहाय्य से मुझ सिंहल-द्वीप को पहुंचा दें, यही मेरे लिये सब से बढ कर सत्कार है। जहाँ, अर्थात् जिस सिंहल-द्वीप में , मुझे स्वयं जाना है, (सो भौ अकेले नहौं, किन्तु ) कटक ले कर पार होऊँ, अर्थात् कटक ले कर पार होना चाहता हूँ। (सो) अरे गज-पति, जो जीऊँ, अर्थात् यदि जीव है, मर न गया, (तो यही इच्छा है, कि पद्मावती को) ले कर तब फिरूँ ; और मरूं तो उमौ ( पद्मावती) के द्वार पर मरूँ, अर्थात् या तो पद्मावती को संग-हौ ले कर फिरूंगा, या उस को डेवढौ पर प्राण तजू गा ॥१४ २॥ ,

  • इतिहासों से स्पष्ट है कि चित्त र-राज वंश हौ का गज-पति था । आज कल के जो विजयनगर के

राजा हैं वह भी अपने को उदयपुर ( चित्तोर) महाराज के वंश में बतलाते हैं।