पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४०५

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१४६] सुधाकर चन्द्रिका। न अस्ति (कुछ खाने पीने की चीज ) कुछ भी नहीं रहती, जिस को (उस ने अपना ) नौव सौंप दिया है, वही ( केवल उस का) माथी है, अर्थात् जिस के लिये घर वार छोड, प्राण देने को तयार है, वही उपास्य-देवता-सदृश उस का माथी है ॥ (मो) जो कुछ द्रव्य संग में थी, सब को संसार में दे दिया, अर्थात् राजा रत्न-सेन ने, दुम बुद्धि से, उस स्थान में जितने गज-पति के राज्य में सत्पात्र लोग थे सब में अपने साथ का धन दान दे कर, लुटा दिया, कि क्या जानें किस सत् (पुरुष) और सती (स्त्री) ( के आशीर्वाद ) से भगवान ( समुद्र के ) पार उतारे, क्योंकि शास्त्र में लिखा है, कि दान पुण्य से क्या नहीं होता। कहावत है, कि एक वार अकबर ने बौरबर से पूँछा, कि संसार में सब से बढ कर कौन कर्म है, जो मृत्यु को भी कुछ काल के लिये हटा दे, इस पर बीरबर ने कहा, कि पृथ्वीनाथ, यह मामर्थ्य दान-ही में है जो कि मृत्यु को भी कुछ काल के लिये हटा देता है। इस पर बादशाह चुप हो रहे। कुछ दिन बीते बादशाह बौरबर को संग लिये वाटिका-विहार करते थे। अकस्मात् हाथ के ऊपर एक काक ने बौट कर दी, उस के धोने के समय अँगूठी में पानी न लगे दूस बुद्धि से बादशाह ने अपने मोहर की अंगूठी को निकाल, बौरबर के हाथ में दिया और कहा, कि खबर्दार इसे खो मत देना, खो देने से जान से हाथ धो बैठोगे। निदान चौटने पर, स्मरण न रहने से बौरबर, अंगूठी अपने जेब में रक्खे, अपने घर श्राये, और बादशाह अपनी महल में पधारे। वहाँ बादशाह को स्मरण हुत्रा, कि बौरबर के छकाने के लिये यह अवसर अच्छा उपस्थित हुा है; मो यह मोच किसी चतुर चार के द्वारा बौरबर के जेब में से उम मुदरी को चुरवा मँगाया, और जिस में किसी प्रकार से मुद्रिका न पाई जाय, यह विचार, उसे अपने हाथ से यमुना में फेंक दिया, और प्रातःकाल होते-हो मुद्रिका के लिये बौरबर के घर सिपाही को भेजा। बौरबर अपने जेब में मुद्रिका को न पा कर, बहुत घबराये, और सिपाही से कहा, कि बादशाह से प्रार्थना करो, कि सन्ध्या के समय दर्बार में मैं मुद्रिका के माथ स्वयमुपस्थित हँगा। सिपाही के चले जाने पर, सब घर बाहर ढूंढा, मुद्रिका कहौं न मिली, तब बादशाह को श्राज्ञा स्मरण कर, बौरबर अपने जौने को आशा दूर कर, और यह विचार कर, कि अब मरण समय में दान पुण्य करना चाहिये, दोनों को दान देने लगे। दान-दुन्दुभि सुन कर, नाना प्रकार के लोग बौरबर के घर दौडे। एक मल्लाह भी एक विशाल मत्स्य को, जिसे तुरन्त-ही यमुना में फंसाया था,