१५१] सुधाकर-चन्द्रिका। ३२५ दोहा। सपत पतार खोजि जस काढउ बेद गरंथ । सात सरग चढि धावउँ पदुमावति जेहि पंथ ॥ १५१॥ इति बोहित-खंड ॥ १४ ॥ जउ- का राजदू राजा ने। कह = कहदू (कथयति) का भूत-काल में एक-वचन । कौन्ह कर (करोति) का भूत-काल । सो = म एव = वह । पेमा = प्रेम। कूसल कुशल । खेमा = क्षेम। खेवहु = खेवद् (खेवते ) का लोट् में मध्यम-पुरुष का बहु-वचन। यदि। खेवद् = खेने में । पारड पारदू (पारयति) का लोट में मध्यम-पुरुष बहु-वचन । जदूम = जैसे-हौ = यथैव। आपु = आप = आत्मा । तरह-तरह (तरति) का लोट् में मध्यम-पुरुष का बहु-वचन । तारहु = तरदू का लोट में णिजन्त का रूप। सोच = शोच = अफसोस । श्रोता = तावान् = उतना । जनम = जन्म । धरती = धरित्री पृथ्वी। सरग स्वर्ग। जाँत = यन्ता = जाँता = पौसने की चक्की। पर = पल्ल = पट = नौचे ऊपर को चक्की। बाँच = बँचद् = (वञ्चति ) ( वच्चु गतौ)। कोऊ = क्वापि= कथमपि । कुसल = कुशल । माँगउँ = माँग (मङ्गते ) का लट् में उत्तम-पुरुष का एक-वचन । पेम-पंथ = प्रेम-पथ = प्रेम की राह । मत =सत्य । बाँधि = बन्धयित्वा बाँध कर। खाँगउँ= खाँगद् (खञ्जति) का लोट् में उत्तम-पुरुष का एक-वचन । हिश्र = हृदय । तउ= तदा = तर्हि। दोश्रा = दोपदीया। डर (दरति) डरता है। पठि = प्रविश्य = पैठ कर। मरजोत्रा = मर कर जौने-वाला = समुद्र में गोता लगाने-वाला = गोता-खोर। हेरउँ = हेरद (हेडते ) का लोट में उत्तम-पुरुष का एक-वचन। ढिढोरी = ढक्का-ढोल कर के = ढिढोरा फेर कर = डाँडी फिरा कर । रत्न। पदारथ = पदार्थ = वस्तु । जोरौ=जोडौ= युग्म ॥ सपत = सप्त = मात । पाताल । खोजि = सज्य (खुज चौर्य) वा संक्षुद्य = खोज कर = खोज ( खोजति ) से बना है। काढेउ = काढदू (कर्षति ) का लोट में प्रथम-पुरुष का एक- वचन । बेद = वेद, ऋग्, यजुर्वेद, साम, अथर्वण । गरंथ = ग्रन्थ । सात = मप्त । चढि चढ कर । धावउँ = धावद् (धावति ) का लोट में उत्तम-पुरुष का एक-वचन ॥ रतन= पतार -
पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४२१
दिखावट