पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४३६

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पदुमावति । १५ । सात-समुदर-खंड । [१५६ मऊत्रा मधक छाता= दोहा । मुहमद मद जो परेम का गए दीप तहँ राखि । सोस न देइ पतंग होइ तउ लहि जाइ न चाखि ॥ १५६ ॥ सुरा = मदिरा = मद्य । पावा = श्रावद् (आयाति) का भूत-काल में एक-वचन । = महुए का फल, जिस से दूस प्रान्त में शराब बनती है। मद- मद-च्छत्र = मद का छाता मादक (नशैली) वस्तु का छाता। जैसे सिंघाडे का छाता पानी में फैला रहता है तिमौ प्रकार दूस न-मजए का मद से भरा छाता, अर्थात् पत्र । देखरावा = देखलाया। पिअ = (पिबति ) पीता है। भावरी भ्रामरौ = घुमरौ । मौस = शौर्ष = शिर । फिर = (स्करति ) = फिरता है = घूमता है। पंथ - पथ में राह में। पदगु = पग = प्रग = -पैर। पेम-सुरा=प्रेम-सुरा = प्रेम का मद्य । पास = पार्श्व= निकट । दाख = द्राचा = अंगर । रसा = लसा = लसद् (लमति) का भूत-काल । बदरी = वैरी = शत्रु। वा, बद्री वरी= वदरौ-वैर वृक्ष। बबुर वर्वर = एक कटौला वृक्ष जो इस प्रान्त में बहुत प्रसिद्ध है। मारि = मारयित्वा = मार कर। कसा = कसद (कर्षति) का भूत-काल में एक-वचन। बिरहद = विरह ने। दगधि दग्ध्वा =दग्ध कर = दहका कर । तन = तनु = शरीर। भाठी = भट्ठीभस्त्रा। हाड = हड्डी = अस्थि । जराइ दोन्ह = जरा दिया । जस = जैसे = यथा । काठी = काष्ठ = लकडी। सउँ = सौ = से । पोती = पूत = पवित्र = आग से दहक कर डेगचे में महुआ-गुड वाष्य हो कर जिस नली द्वारा चूते हैं, उस नली के चारो ओर पोचारे के लिये जल रहता है, जिस से मद्य का वाष्प ठंढा हो कर, जल-रूप में हो कर, नली के मुख से दूसरे पात्र में चूा करता है। इस जल को पोचारे, वा पातारे, वा पोती का जल कहते हैं । मद मद्य = मदिरा । चुा = चुअ = (च्यवते ) चता है। बरा = वरद् (वर्त्तयति) का भूत-काल में एक-वचन । दिश्रा = दीप = दीया । सुरागनि = सुराग्नि = सुरा को अग्नि से । भूज (भ्रज्जति, भ्रस्ज धातु से) मूंजता है। माँसू मांस । गिरि गिरि = गिर गिर कर = गल गल कर । परहिँ = परदू (पतति) का बहु-वचन । रकत = रक्त = लोहू । आँसू = अश्रु श्राम ॥ परेम = प्रेम । दीप= दीपक =दौया । राखि = रचयित्वा = रख कर। पतंग कौट = फतंगा। तउ लहि सक । जादू ( याति) जाता है। चाखि = चख (चषति) से बना = तब चाखा ॥