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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४३७

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सुधाकर-चन्द्रिका । ३३१ राजा सुरा (मदिरा) के समुद्र में आया । महा मद के छाते को देखलाया, अर्थात् उस समुद्र में जहाँ देखो तहाँ महुआ के छाते (पत्र) मद से भरे देख पडते हैं, जिन के मिलने से समुद्र का जल मदिरा हो गया है ॥ (दूस लिये ) जो तिस (जल) को पीता है वह (सो) ( नशे से ) भावरी लेने लगता है, अर्थात् घुमरौ खाने लगता है। शिर फिरता है, अर्थात् शिर में चक्कर आने लगता है, (और वह पुरुष ) राह में पैर नहीं देता है, अर्थात् उस पुरुष का राह में सौधा पैर नहीं पड़ता है ॥ राजा उन महओं की छाया में बैठ कर विश्राम क्यों नहीं लेता है। इस पर कवि कहता है, कि जिस के हृदय में प्रेम-सुरा है, अर्थात् जो प्रेम-सुरा से छक गया है, वह महुए की छाया में क्यों (कित = कुतः) बैठे (बठद् = बैठे = उपविष्टो भवेत् = विशेत् ) ॥ (राजा दूस समुद्र-सुरा को क्यों नहीं पीता है; इस पर कवि कहता है, कि) गुरु (शक वा गोरखनाथ जिस को स्मरण कर चला है) के पास (राजा) अंगूर रस से रस गया है। अर्थात् गुरु की कृपा से द्राक्षा-रूप जो प्रेम उस से राजा को शरीर भर गई है, (और राजा ने ) वैरौ बबुर को मार कर, अर्थात् शरीरान्तर्गत मोह, लोभ, क्रोध इत्यादि जो वेरौ, कण्टक-खरूप बबुर के सदृश उन्हें हटा कर, वा मोहादि जो बैर बबुर सदृश उन्हें हटा कर, (उस प्रेम-द्राक्षा को अच्छी तरह) मन में कस लिया, अर्थात् मन के भीतर भर लिया ॥ विरह (अग्नि) को दगधा कर तनु ( पारीर) को भट्ठी किया, (और) हड्डियों को ऐसा जराया जैसे कि काठ । (अपने ) नयन जलों से पाचारा किया, अर्थात् उस भट्ठी में से वह प्रेम-द्राक्षा का रस वाष्य हो कर, जब गले की पिछली नस-नली से चला, तब उस को ठंढा करने और जल-रूप करने के लिये नयनाश्रुओं से पोचारा किया । (इस प्रकार से नयाँ के द्वारा) तैसा मद (मदिरा = सुरा) चुत्रा जैसे दीप बरा हो, अर्थात् उस चूते सुरा का ऐसा उज्ज्वल तेजो-मय रूप है जैसे दीप को संचलित शिखा हो (इस लिये जिस के पास अंगूरौ शराब है, वह मैलो महुए को बदबूदार शराब क्यों पौवे) ॥ ( यद्यपि राजा के हृदय में ऐसी अंगूरौ शराब भरौ है, तथापि मुख-द्वारा हृदय में न भरने से, राजा दूस के स्वादु से वञ्चित है, क्योंकि यह तो गुरूपदेश से कान की राह से राजा के हृदय में भर गई है। इस लिये दूसरी राह से पेट में जाने से सुख के बदले राजा को दुःख-दायिनी हो गई है)। विरह ( दूस) सुराग्नि से, अर्थात् घी के स्थान में दूसो सुरा को तपा अग्नि-मय कर, उस में (राजा के) मांस को भूज