१५७ - १५८] सुधाकर-चन्द्रिका। ३३५ - अर्थात् सब कोई धौरज छोड कर घबडा गये । (तरङ्ग-रूप) नयनों को ऐसा काढ रहा है, अर्थात् वार वार तरङ्ग-नयनों से ऐसा गुरेर रहा है। जानौँ नगौच होते-ही लोल- ता है, अर्थात् अपने लहरों को ऐसो भयङ्कर लीला को देखला रहा है, जिस से यही जान पडता है, कि दूस के नगीच हुए, कि निगला ॥१५॥ चउपाई। हौरा-मनि राजा सउँ बोला। इह-ई समुद आहि सत-डोला ॥ सिंघल-दीप जो नाहिं निबाहू। इह-इ ठाव साँकर सब काहू इह-इ किलकिला समुद गंभौरू। जेहि गुन होइ सो पावइ तौरू ॥ इह-इ समुदर-पंथ मँझ-धारा। खाँडइ कड असि धार निरारा ॥ तीस सहसर कोस का पाटा। तस साँकर चलि सकइ न चाँटा॥ खाँडइ चाहि पनि पइनाई। बार चाहि पातरि पतराई ॥ इह-इ ठाव कहँ गुरु सँग लौजिअ । गुरु सँग होइ पार तउ कौजिअ॥ दोहा। मरन जिबन रही पँथ एही आस निरास । परा सो गएउ पतारहि तरा सो गा कबिलास ॥ १५८॥ सत-डोला ठाव = स्थान । हौरा-मनि हौरा-मणि। सउँ = साँ= से । बोला = बोल (बल्ाति वा वदति) का भूत-काल में एक-वचन । दह-ई = यही = अयं हि । श्राहि = है ( अस्ति ) । सत्य-दोलक: = सत्य को डोलाने-वाला = सत्य को डगाने-वाला = सत्य को हिलाने-वाला = सत्य छोडाने-वाला। सिंघल-दीप= सिंहल-दीप । निबाह = निर्वाह । साँकर = सङ्कटम्= सङ्कट = कठिन = दुःखद । गंभौरू = गम्भीर गहरा। गुन = गुण = विद्या = शाइर । वा गुण = डोर, जहाज को। पाव = (प्राप्नोति) पाता है। तौरू = तौर = तट = किनारा, उस पार का । समुदर = समुद्र । समुदर-पंथ = समुद्र-पथ : समुद्र को राह। मॅझ-धारा मध्य-धारा= -बीच को धारा। खाँड = खण्ड्य = तलवार = खड्ग। असि = एतादृशी =ऐसौ। धार = धारा। निरारा = निरालय= बाहर = निकली = निनार = निराल खाम= अलग । तीम = त्रिंशत् । सहसर हजार। कोस पाटा=पाट= पात्र । सकद- -क्रोश ।
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