१६२] सुधाकर-चन्द्रिका। ३४७ लगाया परा - श्रम लाग-लगद i = लगदू (लगति) का णिजन्त का भूत-काल में एक-वचन । कब-हुँ = कदापि हि = कभौं। श्रम एतादृश = ऐसौ। जुडान = जुडाई = ठंढी हुई = जडी-भूत हुई। सरोरू = पारीर। = पर (पतति) का भूत-काल में एक-वचन। अगिनि अग्नि = श्राग। मलय-समोरू = मलय-समौर = मलय का वायु । निकमत = निःकशन् = निकलती। श्राउ= श्रावद् (श्रायाति)। किरिन = किरण। रबि = रवि = सूर्य। रेखा लेखा = पति = पाँति। तिमिर = अन्धकार अँधेरा। निरमर = निर्मल = स्वच्छ। जग = जगत् = संसार। देखा = देख पडता है। उठद् = (उत्तिष्ठते ) उठता है। मेघ = बादल । एतादृश = ऐसा। भागद् = अग्रे = आगे। चमकद = (चम् करोति) चमकता है। बौजु = विद्युत् = बिजली। गगन = आकाश। पर = उपरि =ऊपर। (लग्य ते ) लगती है। मसि पाशि चन्द्रमा। परगामा= -परगास = (प्रकाशते) का भूत-काल में एक-वचन । चाँद = चन्द्र = चन्द्रमा । कचपची = कृत्तिका नक्षत्र जिम में छ तारे रहते हैं = जिस के तारे कचपच करते रहते हैं। गरामा = गरासद् (ग्रसते) का भूत-काल में एक-वचन । अउरु =अपर = इतर। नखत = नक्षत्र । चहुँ = चारो। दिसि = दिशि = दिशाओं में। उँजिारौ= उज्वलता = उँजेला । ठाव = स्थान। दोप- दौया = चिराग । बारौ = बार (वर्त्तयति ) का भूत-काल में स्त्रीलिङ्ग का एक-वचन ॥ दखिन = दक्षिण । निअर-हि = निकट-हौ। कंचन = कञ्चन = सुवर्ण । मेरु = प्रसिद्ध उत्तर दिशा का पर्वत जहाँ देवता लोग रहते हैं। देखाउ= देखाता है= देख पडता है। बसंत = वसन्त = तुओं का राजा। वसंत = बसता हुआ =बमा हुआ। जग = जगत् = संसार, यहाँ सब स्थान । राजा ने (शाक से पूछा, कि) हे शुक गुरु, कहो (तो आज हम लोग कहाँ आये, क्योंकि ) श्राज नहीं जानता, (कि ) कैसी (कहा कथम् ) दशा (भाग्य) उदय हुई ॥ (आज) वायु शीतल सुगन्ध को ले श्राया है। (जो) शरीर भस्म होती थी (उस में) जानाँ चन्दन लगाया गया है। ऐसी कभी शरीर नहीं ठंढी हुई थी। ( जान पडता है, कि) आग में मलय-वायु पडा है, अर्थात् आज मलय-वायु से मेरे शरीर की तपन बुझ गई है ॥ रवि के किरण को पति निकलती पाती है, अर्थात् प्रातःकाल हो रहा है। अन्धकार (नष्ट हो) गये ; जगत् निर्मल (माफ) देख पड़ता है ॥ आगे ऐसा (जान पडता है) जानौँ बादल उठा है। बिजली चमकती है, (और) आकाश पर लगती है, अर्थात् बिजली चमक चमक कर श्राकाश के ऊपर जा कर
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