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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४६३

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१६३-१६४] सुधाकर चन्द्रिका । ३५७ 1 (महादेव ) के बाद दूसरौ गणना इन्हीं की है। हठ-योग-प्रदीपिका में प्रधान सिद्धों के ये नाम लिखे हैं, श्री-आदिनाथ-मत्स्येन्द्र-शाबरा-नन्दभैरवाः । चौरङ्गी-मौन-गोरक्ष-विरूपाच-बिलेशयाः ॥ मन्थानो भैरवो योगी सिद्धिर्बुद्धश्च कन्थडिः । कोरण्टकः सुरानन्दः सिद्धपादश्च चर्पटिः ॥ कानेरौ पूज्यपादश्च नित्यनाथो निरञ्जनः । कपाली बिन्दुनाथश्च काकचण्डीश्वरावयः ॥ अल्लामः प्रभुदेवश्च घोडा चोली च टिण्टिणिः । भानुको नरदेवश्च खण्डः कापालिकस्तथा ॥ इत्यादयो महामिद्धा हठयोगप्रभावतः । खण्डयित्वा कालदण्डं ब्रह्माण्डे विचरन्ति ते ॥ (उपदेश १ । लो० ५-६) मत्स्येन्द्र-नाथ की नव नार्थों में भी गणना है। नव नार्थों के लिये १२८ वें दोहे की टौका देखो ॥ १६३ ॥ चउपाई। सो गढ देखु गगन तइँ ऊँचा। नयन देखि कर नाहिँ पहुँचा ॥ बिजुरी चकर फिरहिँ चहुँ फेरे। अउ जमकात फिरहिँ जम केरे ॥ धाइ जो बाजा कइ मन साधा। मारा चकर भण्उ दुइ अाधा ॥ चाँद सुरुज अउ नखत तराई। तेहि डर अंतरिख फिरहिँ सबाई ॥ पवन जाइ तहँ पहुँचा चहा। मारा तइस टूटि भुइँ बहा ॥ अगिनि उठी जरि बुझी निभाना। धुआँ उठा उठि बीच बिलाना ॥ पानि उठा तहँ जाइ न छूआ। बहुरा रोइ आइ भुइँ चूना ॥ दोहा। रावन चहा सउँह कइ (हेरा) उतरि गए दस माथ । संकर धरा ललाट भुइँ अउरु को जोगी-नाथ ॥१६४॥