पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४६२

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३५६ पदुमावति । १६ । सिंघल-दीप-भाउ-खंड । वैन्य, वेन का पुत्र, राजा पृथु । वेन जब अपने राज्य में बहुत अत्याचार करने लगा, तब मुनि और देवता लोगों ने मिल कर उसे मार डाला। उस को सन्तान न था, इस लिये राजा होने के लिये उस से सन्तान पैदा करने के लिये सब प्रजा देव, मुनि लोग उस की मरौ शरीर को मथने लगे। मथते मथते पहले उस को शरीर से महापाप-रूप काला निषाद उत्पन्न हुआ। फिर दूसरौ वार मथन करने से महा-प्रतापी, यशखी, दानौ, दयालु, सत्य-वादी राजा पृथु हुआ, जिसे वेन को शरीर से उत्पन्न होने के कारण लोग वैन्य कहते हैं। इस को कीर्त्ति-महिमा चतुर्थ-स्कन्ध भागवत के १५-२३ अध्याय तक वर्णित है। इसी ने पृथ्वी को दुह कर, दूस से अनेक धान्य प्रजाओं के सुख के लिये उत्पन्न किया। पृथ्वी इस को भार्या थी। यद्यपि अाज तक अनेक राजा हो गये, जो पृथ्वी को भोगते आये, तथापि पृथ्वी आज तक पृथु-ही की भार्या कहाती है। ऐसा मनु ने मनु-स्मृति में कहा है, पृथोरपीमा पृथिवौं भायीं पूर्वविदो विदुः । स्थाणुच्छेदस्य केदारमाहुः शल्यवतो मृगम् ॥ (अध्याय ६, झो०४४) इस पृथु (वैन्य) को प्रशंसा में व्यास ने ४ स्कन्ध भागवत के २३ वें अध्याय के अन्त में लिखा है, कि वैन्यस्य चरितं पुण्यं श्टणुयात् श्रावयेत् पठेत् । वैचित्रवीर्याभिहितं महन्माहात्म्यसूचितम् ॥ अस्मिन् कृतमतिर्मर्त्यः पार्थवौं गतिमाप्नुयात् । अनुदिनमिदमादरेण श्टण्वन् पृथुचरितं प्रथयन् विमुक्तसङ्गः । भगवति भवसिन्धुपोतपादे स च निपुणां लभते रतिं मनुष्यः ॥ मछंदर-नाथ वही हैं, जो नेपाल में हुए हैं और संस्कृत में जिन्हें मत्स्येन्द्र-नाथ कहते हैं। इन्हीं के शिष्य गोरख-नाथ थे। नाथ-पंथियों में यह इतिहास है, कि शिव (महादेव ) जी, जिन्हें नाथ-पंथी (गोरख-पंथौ) श्रादि-नाथ कहते हैं, किसी समय किसी द्यौप में एक पुष्कर के तट पर सुखद एकान्त स्थान को देख कर, पार्वती को हठ योग का उपदेश देते थे तट पर एक मत्स्य भी बैठा उन उपदेशों को निश्चल मन से सुनता था। अन्त में महादेव जी ने उसे भी सत्पात्र समझ, जल के सिञ्चन से सिद्ध-पुरुष बना दिया। प्रधान सिद्धों में श्रादि-नाथ