पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४६७

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१६५] सुधाकर-चन्द्रिका । दोहा। तुम्ह गवनहु श्रीहि मंडप हउँ पदुमावति पास । पूजइ आइ बसंत जउ तउ पूजिहि मन आस ॥ १६५ ॥ =खण्ड तहाँ = तत्र । देखु = देखद् (दृश्यते) का लोट में मध्यम-पुरुष का एक-वचन । पदुमावति = पद्मावती। रामा = सुन्दर रमणयोग्य युवती । वा, रामा = रमा = लक्ष्मौ । भवर = भ्रमर = भौंरा। पंखी = पची। नामा = नाम । अब = अधुना= दूदानीम् । सिधि= सिद्धि = उपाय । देउ = दे = (दत्ते) का उत्तम-पुरुष में एक-वचन । जोगू = योग्य = लायक । पहिल = प्रथम हि = पहले । दरस = दर्शन = देखा देखो। हो - होवे = होय = होद (भवति) का विध्यर्थ में एक-वचन । तउ = तदा = तब । भोगू = भोग = समागम-सुख । कंचन कञ्चन = सुवर्ण = मोना । मेरु = उत्तर ध्रुव के नीचे का पर्वत जहाँ देवता लोग बसते हैं । देखावसि = देखावद् (दर्शयति) का मध्यम-पुरुष में एक-वचन । जहाँ = यत्र! मंडप मण्डप मन्दिर के बाहर का भाग जो कि छाया-दार रहता है। क = का। खंड: छोटे छोटे भाग = खंभे = आधार। जस= यथा = जैसे। परबत = पर्वत। मेरू मेरु । लागि = लगित्वा = लग कर। अति अत्यन्त =बडा। फेरू = फेर = घेरा = प्रदक्षिण-परिधि । दसवाँ चान्द्र-मास । मास = - महीना पाछिल = पिछला = पश्चिम = पश्चात् । पख = पक्ष । लागे = लगने में = लग्ने । सिरौ= श्री। मिरी-पंचमी = श्री-पञ्चमी = वसन्त पञ्चमी, भारतवर्ष में दूसौ दिन से वसन्तोत्सव प्रारम्भ होता है। होइहि = होद (भवति = अस्ति ) का भविष्यत्-काल में एक-वचन । आगे = अग्रे। उघरिहि = उघर ( ( उहटति) का भविष्यत्-काल में एक-वचन । बारूबार= द्वार= दरवाजा। पूजद् = पूजने । जादू = ( याति) जाता है। सकल = सब। मंसारू = संसार = संसार में बसने-वाले जन। पुनि = पुनः। पूजदू = पूजने ।

श्राव= आयाति। मिसु = मिष: व्याज = बहाना। दिमिटि = दृष्टि = आँख

नजर। मरावा = मिलाप समागम ॥ गवन गमन करो=जाव। हउँ = अहम् = पास = पार्श्व = निकट। पूजद् = पूजे = पूजदू (पूर्यते) का संभावना में एक-वचन । बसंत = वसन्त पञ्चमी । जउ = यदि। पूजिहि = पूजद (पूर्यते ) का भविष्यत् में एक-वचन । श्रास = श्राशा = इच्छा = उम्मेद ॥ माघ= . त्रावा 46