पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३६२ पदुमावति । १६ । सिंघल-दीप-भाउ-खंड । [१६५ - (हौरा-मणि शुक कहता है, कि) तहाँ, अर्थात् जिस गढ को प्रशंसा पीछे कर आये हैं तहाँ, पद्मावती रमणी (वा पद्मावती प्रकृति-रूपा रमा चिच्छक्ति) है। (जिम रमणी के यहाँ) भ्रमर नहीं जाता है, (और उस के यहाँ) पक्षी का नाम नहीं है, अर्थात् वहाँ भ्रमर को गति नहीं है; और उस के यहाँ उस के पिता गन्धर्व-सेन को श्राज्ञा से कोई पचौ भी नहीं रहने पाता। मैं केवल था सो आप-हो के पास चला श्राया। (५७ वाँ दोहा, ८८ पृ० देखो ) ॥ (सो) तेरे योग्य मैं अब एक सिद्धि देता हूँ, अर्थात् एक उपाय बताता हूँ, (जिस से ) पहले ( पद्मावती का) दर्शन हो । तब (पौछे उस के समागम का सुख) भोग (मिले ) ॥ (अब शुक उपाय बताता है) जहाँ तुम सोने का मेरु देखलाते हो ('उरु दखिन दिसि निअर-हि कंचन मेरु देखाउ' १६२ वाँ दोहा) तिसौ स्थान में महादेव का मण्डप है ॥ उसी के खण्ड (छोटे छोटे भाग चारो ओर ऐसे हैं ) जैसे मेरु के पर्वत, अर्थात् मेरु के आधार-पर्वत हैं। पुराणों में लिखा है, कि सुमेरु छत के ऐसा है, उस के चारो ओर पूर्वादि दिशा के क्रम से मन्दर, सुगन्ध, विपुल, और सुपार्श्व खंभे के ऐसे अाधार पर्वत हैं। भास्कराचार्य ने भी गोलाध्याय के भुवनकोश में पुराणानुसार लिखा है, कि 'विष्कम्भशैलाः खलु मन्दरोऽस्य सुगन्धशैलो विपुलः सुपार्श्वः' (भास्कर के लिये गणक-तरङ्गिणो देखो)। (और आधार-पर्वत) मेरु में, अर्थात् ऊपर की छत में, लग कर अत्यन्त घेरा हुआ है, अर्थात् श्राधार-खंभों को लगा कर मण्डप को गोलाई बहुत भारी बनाई गई है। माघ महीने में पिछला पक्ष लगने पर, अर्थात् शुक्ल पक्ष लगने पर, श्रागे वसन्त पञ्चमी होगौ ॥ (उमौ दिन) महादेव (के मन्दिर) का दरवाजा खुलेगा। (उस दिन महादेव को) पूजने को सब संसार, अर्थात् सब लोग जाते हैं ॥ (उसी दिन) फिर पद्मावती (भी) पूजने को (वहाँ) आवेगौ। उसौ व्याज से (वहाँ-हौ) दृष्टि-समागम होगा, अर्थात् उस दिन वहाँ तुम और पद्मावती से आपस में देखा देखी होगी । ( सो) तुम उसी (महादेव के ) मण्डप में चलो (और) मैं पद्मावती के पास (जाता है)। यदि (ईश्वरेच्छा से ) वसन्त पञ्चमी पा कर पूजे, अर्थात् निर्विघ्न पञ्चमी श्रा कर पूरी पड जाय ; तब तक किसी के यहाँ यह भेद न खुले, तो (तुमारे) मन को श्राशा पूरी होगी॥ हठ-योग के साधने-वाले प्रायः वसन्त पञ्चमी-ही से योग-क्रिया प्रारम्भ करते हैं। इस लिये यहाँ मेरु से ब्रह्मा-रन्ध और उस स्थान में स्थित शाम्भवी शक्ति को महादेव मानने से सब योग-पक्ष में लग जाता है (१६३ दोहे को टौका देखो) ॥ १६५ ।।