पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४९९

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१७] सुधाकर-चन्द्रिका । GT = उगच्छति दुख = दुःख। हिबई = हृदये = हृदय में । गंभीरू = गम्भीर = गहिरा। नयनहिँ = आँखों में। बाद = एत्य = आ कर। चुत्रा = चुश्रद् (च्यवते ) का प्रथम-पुरुष में लिट् का एक-वचन। हादू = भूत्वा = हो कर । नौरू = नौर = पानी। रही = रहदू (रहते) का प्रथम-पुरुष में लिट् का एक-वचन । रोद् = रुदित्वा = रो कर । जउँ = ज्यों = जैसे-हौ। पदुमिनि = पद्मिनी । हसि = हसित्वा = हँस कर । पूछहिँ = पूछद् (पृच्छति ) का प्रथम- पुरुष में लट का बहु-वचन । सयानौ = सयान (सज्ञान ) का स्त्री-लिङ्ग । मिले = मिलने में (मिल मङ्गमे से)। रहस क्रीडा = सुख । चाहि = चाहिए (चाहदू इच्छति से बना )। भा = भया, यहाँ होना। दूना = दिगुण। कित= किमुत = क्यों । रोश = रोदए (रोअदू = रोदिति से बना)। बिकूना = विच्छुरित -बिकुडा। क = का। उतर = उत्तर । कहा = कहदू (कथयति) का प्रथम-पुरुष में लिट का एक-वचन । बिछुरन = विच्छुरण । भरि = भर कर । ढरा = ढरदू (अवधरति ) का प्रथम-पुरुष में लिट् का एक-वचन ॥ बिकुरंता विच्छुरित = बिछुडा हुआ। जब - यदा । भेंट (मिलति वा अभ्यटति) भैंटता है। जान = (जानाति) जानता है। नेह = स्नेह । सुकव = सुख । सुहेला शोभित = मोहावना। उग्गवद् उदय होता है। दुकव = दुःख । झरद् झरता है (झरति)। जिमि = यथा = जैसे । मेह = मेघ = बादल || तिमौ (पति-)वियोग (कौ पौडा के समय में ) होरा-मणि क ा गया, (उस के देखने से) जानों पद्मावती जीव को पा गई। वह (पद्मावती) सुग्गे को गले में लगा कर रोई, (सच है) यदि बिछुडा मिले तो बहुत मोह होता है। ( सुग्गे के बिछुडने का) दुःख बुझ गया और गहिरे हृदय से उठा ; आँखों में श्रा कर पानौ हो कर चू पडा । जैसे-हौ पद्मिनी ( पद्मावती) रानौ रो कर (चुप हो) रही (तैसे-हो) सब मयानी मखियाँ हस कर पूछने लगौं। (कि बिछडे के ) मिलने में चाहिए कि दूना सुख हो; जब बिकुडा मिल गया ( तब) क्यों रोना चाहिए। तिस के उत्तर में पद्मावती ने कहा कि बिछुडने का जो दुःख हृदय में भरा था ( उस के स्थान में बिछुडे के ) मिलते-हौ सुख श्रा गया और हृदय में भर गया ( सो वह दुःख हलका हो कर) आँखों से पानी हो कर गिर पडा ॥ (कवि कहता है कि ) जब बिछुडा हुआ (श्रा कर) भेंटने लगता है (उस समय को दशा ) वही जानता है जिसे कि नेह है; (उस समय ) सोहावना सुख उदय होने लगता है और दुःख झरने लगता है जैसे कि मेघ ॥ १७८ ॥ .. 50