पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५००

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पदुमावति । १६ । सुआ-भेंट-खंड । [१७६ चउपाई। पुनि रानौ हँसि कूसर पूछा। कित गढूनहु पौंजर कइ ठूछा ॥ रानी तुम्ह जुग जुग सुख पाटू । छाज न पंखिहि पौंजर ठाटू ॥ जउँ भा पंख कहाँ थिरु रहना। चाहइ उडा पाँख जउँ डहना॥ पौंजर मँह जो परेवा घेरा। आइ मँजारि कौन्ह तह फेरा॥ दिवस-क आइ हाथ पइ मेला। तेहि डर बनोबास कहँ खेला ॥ तहाँ बिबाध आइ नर साधा। छूट न पाउ मौच कर बाँधा ॥ वेइ धरि बैंचा बाम्हन हाथा। जंबू-दीप गाउँ तेहि साथा ॥ दोहा। तहाँ चितर चितउर-गढ चितर-सेन कर राज। टीका दोन्ह पुतर कहँ आपु लौन्ह सिउ-साज ॥ १७६ ॥ पुनि = पुनः = फिर। रानौ =राज्ञी। हँसि = हसित्वा = हँस कर । कूसर= कुशल । पूछा पूछ (पृच्छति) का प्रथम-पुरुष में लिट का एक-वचन । कित = किमुत = क्यों गवनड = गए (गमन से बना)। पौंजर = पञ्जर = पिँजडा। कदू = कृत्वा = कर । छूछा = खालौ (छो छेदने से)। जुग = युग एक काल-परिमाण । पाटू = पट्ट = सिंहासन । छाज = सोहता है (सज्जते )। पंखिहि = पक्षी को। ठाट = स्थिति । जउँ ज्याँ = जैसे-हो। भा = बभूव हुआ। पंख = पक्ष = पर । कहाँ = कुतः = काहे को । थिरु = स्थिर। रहना =रहणीयं (रहद से बना है)। चाहदू = चाहता है (चदते या दूच्छति)। उडा [उडद् (उड्डीयते ) से बना है] उडना । पाँख = पक्ष = पर । डहना = डयन = डैना । मह = मध्य। परेवा पारावत, यहाँ पक्षौ। घेरा = ग्रहौत। श्रादू श्रा कर। मँजारिमार्जारौ= बिलैया। तहाँ तत्र । फेरा = स्फुरण = फेरी। दिवस क = दिवस एक = एक दिन । हाथ = हस्त । पद् = अपि = निश्चय । मेला मेले (मेलयेत् ) डाले। डर = दर =भय । बनोबास वनवास। खेला = खेल (खेलति) का उत्तम-पुरुष में लिट का एक-वचन । बिाध = व्याध = बहेलिया। श्रादू = एत्य = श्रा कर। नल = नरकट की नलौ = लग्गी जिस से बहेलिया खाँचा मारते हैं। माधा = माधद ( साधयति) का प्रथम-पुरुष में लिट् का एक वचन । कूट = कुटद् ( कुट छेदने ) ।

एत्य

= नर-