पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५०

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पदुमावति । १ । असतुति-खंड । अथ पदुमावति लिख्यते। = मूल अथ असतुति-खंड । चउपाई। सवरउँ आदि एक करतारू । जेइ जिउ दोन्ह कौन्ह संसारू ॥ कौन्द्रसि प्रथम जाति परगाव । कीन्हें सि तेहि परबत कबिलास्त्र ॥ कौसि अगिनि पवन जल खेहा। कौन्हैसि बहुतइ रंग उरेहा ॥ कौन्हेंसि धरती सरग पतारू। कीन्हेसि बरन बरन अउतारू ॥ कीन्हसि सपत दीप ब्रहमंडा। कौन्हेंसि भुअन चउदह-उ खंडा ॥ कौन्तेसि दिन दिनिअर ससि राती। कौन्दसि नखत तराण्न पाँती ॥ कौन्हेंसि सौउ धूप अउ छाँहा। कौन्हेंसि मेघ बौजु तेहि माँहा ॥ दोहा। कौन्ह सबइ अस जा कर दोसर छाज न काहि । पहिलइ तेहि कर नाउँ लेइ कथा करउँ अउगाहि ॥१॥ टीका॥ असतुति-खंड = स्तुति-खण्ड । यद्यपि खण्ड खण्ड में ग्रन्थ की रचना करना ग्रन्थ-कार के लेख से नहीं पाया जाता, तथापि बहुत पुस्तकों में खण्डों के नाम होने से अनुमान होता है कि पौछे से लोगों ने इस ग्रन्थ का पुराणवत् अादर करने के लिये पद्म-पुराण, स्कन्द-पुराणादि के ऐसा, दूस में भी अनेक खण्ड कर डाले। दूस खण्ड में ईश्वर और गुरु को ग्रन्थ-कार ने स्तुति की है। दूमौ लिये दूस का स्तुति-खण्ड नाम पड़ा । सवरउँ = सुमिरउँ । जोति = ज्योतिः। परगामू = प्रकाश । कबिलासू = कैलास । खेहा = धूलि । उरेहा = उल्लेख, रचना। दिनिअर = दिनकर, सूर्य। तराण्न = तारा-गण। मौउ = शौत । बौजु = विद्युत्, बिजुलौ। अउगादि = अवगाहन कर, डूब कर ॥